Sunday, March 20, 2016

होरी खेलें हँस हँस मनमोहन और उनसे राधा प्यारी भी

होली पर नज़ीर अकबराबादी की एक और रचना -


जब खेली होली नंद ललन हँस हँस नंदगाँव बसैयन में
नर नारी को आनन्द हुए ख़ुशवक्ती छोरी छैयन में
कुछ भीड़ हुई उन गलियों में कुछ लोग ठठ्ठ अटैयन में
खुशहाली झमकी चार तरफ कुछ घर-घर कुछ चौप्ययन में
डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में
गुलशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में

जब ठहरी लपधप होरी की और चलने लगी पिचकारी भी
कुछ सुर्खी रंग गुलालों की, कुछ केसर की जरकारी भी
होरी खेलें हँस हँस मनमोहन और उनसे राधा प्यारी भी
यह भीगी सर से पाँव तलक और भीगे किशन मुरारी भी
डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में
गुलशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में


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