Sunday, February 28, 2016

जल जंगल जमीन जनता सम खग-मृग रहें सुखारे


केवलादेव रामसर
(भरतपुर पक्षी अभ्यारण्य)
- संजय चतुर्वेदी

साहिब सुनौ घना के भीतर,
करौ तीतर चूं चूं बोलै भूरौ करै कतीतर
गिरिजा बटई ब्राह्मी मैना खंजन चकवी चकवा
बक बगला बलाक अंजन सारस सुरकंठ चहकवा
घुंगिल दाबिल बुज्जा बाज़ भुजंगा रामचिरैया
घुघ्घू बुब्बू चुगद चील कठफोड़वा बया पपैया
पनकौआ धनेस मुटरी जलमुर्गी खुटकबढ़ैया
जाड़े में पुनि आएं हजारन लाखन यहीं बसैया  
अनजाने रसदार फलन के तोता बीज निकारै
बुलबुल ऊधम करै दूर बन केकी कहूँ पुकारै
हरे कबूतर ऊपर बैठे झुरमुट बैठे कौआ
सात सहेली चकर-चकर में महागदर समझौआ
फुनगी ऊपर हरियल फुदकै टुकटुक करै बसंता 
नीलकंठ बिसपाई जंगल ताकी कथा अनंता  
जीवतत्व मुरझाय रहे औसधी रसायन मारे
गौरैया हलकान गिद्ध सब जानें कहां सिधारे
नगर खाय जलवायु मरै घुट-घुट गामन कूँ मारै
बन मरिहैं तौ हमहूँ मरिहैं तासैं कौन उबारै
परजीबी बिकास के लच्छन आन परे जंगल में
आज करौ चिंता, बिनास जो छिपे काल में, कल में
जल जंगल जमीन जनता सम खग-मृग रहें सुखारे
सदा रहै जलघास सदा किलकारें हंस हमारे.

(2015)

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