Thursday, March 19, 2015

रोशनी देने की काबिलियत है, मुझमें भी - रूडी सिंह की कविताएँ

फ़ोटो और हाइकू: रूडी सिंह 

एकाध दिन पहले मैंने आपको रूडी सिंह के खींचे कुछ पोर्ट्रेट्स दिखाए थे और वायदा किया था कि उनकी कविताओं से आपको जल्दी रूबरू कराऊंगा. अभी उनकी दो कवितायेँ देखिये. उनका एक संक्षिप्त परिचय मैंने इस पोस्ट में लगाया था, जिसमें उनके ब्लॉग का लिंक भी दिया गया है - रूडी सिंह के पोर्ट्रेट.

उनकी कविताओं का अनुवाद थोड़ा मुश्किल था, सो जैसा भी मुझसे बन पड़ा आपके सामने है. अनुवाद के किसी भी दोष की पूरी ज़िम्मेदारी मेरी है. मूल अंग्रेज़ी कवितायेँ पोस्ट के नीचे दी गयी हैं.  

रूडी सिंह

उल्काएं और माचिस के डिब्बे

पूर्व दिशा में उगा सुबह का सितारा
मेरे घर के हृदय की गहराई में पहुंचा देता है एक उपमा को
जलाता हुआ एक मोमबत्ती,
दिखलाता है कैसे मैं हूँ एक मोमबत्ती की परछाईं;
लेता हुआ उसी की शक्ल जहां मैं पड़ता हूँ,
अभी टेढ़ामेढ़ा, अभी खंडित, अभी लहरदार किसी सांप के जैसा,
जबकि मेरी असल फितरत बनी रहती है मोमबत्ती के जैसी;
निखालिस और सीधी, दूर हटाती अँधेरे को
और अगर कोई उल्का मेरे बेहद करीब से होकर गुजरने वाली हो,
या अगर अपने दर्शन का सार माचिस की डिब्बी में बंद कर पाता कोई चालाक उस्ताद;


रोशनी देने की काबिलियत है, मुझमें भी. 

इन दिनों

एक रूपक की मांग की तुमने
और मैंने तुम्हें बताया
गुप्ता हैंडीक्राफ्ट्स के बाहर खड़ी टूटी इंडिका के बारे में;
वाकई मुश्किल होता जा रहा है
ऐसे ही बेपरवाह बने रहना
इन दिनों

तुमने चाय के लिए कहा मुझसे
मैंने कहा मैं बना लाता हूँ तुम्हारे लिए
लेकिन किचन में मैं तय नहीं कर सका
प्लास्टिक के कप
या स्टील की ट्रे

मैं जानता हूँ खूबसूरत है यह
मैं जानता हूँ यह पेड़ है एक
चिन्हित किया जा चुका है मगर नष्ट कर डाले जाने के वास्ते
ठीक जैसे तुम और मैं
और बाकी सारी चीज़ें हैं
इन दिनों

तुमने मुझसे एक लतीफे की मांग की
मैंने कहा उस शख्स का ऑपरेशन हुआ गुर्दे की पथरी का
और वह मारा गया आँतों के कैंसर से;
हर किसी के लतीफों की टाइमिंग गलत होती है
और होते हैं वे गैरमुनासिब
इन दिनों

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Meteors and Matchboxes

The morning star in the East arisen,
Drives metaphor deep into the heart of my home,
Illuminating a candle,
Shows me how like a candle’s shadow I am;
Taking the shape of what I fall upon,
Now crooked, now broken, now winding like a snake,
While my true nature ever like the candle remains;
Pure and straight, and dispelling darkness,
If only some meteor were to fly too close to me,
Or if some crafty teacher were to distill his philosophy into a matchbox;

I, too, am capable of Light

These days

You asked me for a metaphor
And I told you about the broke down Indica
Outside Gupta Handicrafts;
It’s getting really difficult
To be so cool and all
These days.
You asked me for some tea,
I said I’d make you some;
But in the kitchen I couldn't choose
Between the plastic cups
And steel trays.
I know it’s beautiful,
I know it’s a tree,
But it’s marked for demolition,
Just like you and me
And everything else
These days.
You asked me for a joke,
I said they operated for kidney stones
But he died of intestinal cancer;
Everyone’s jokes are mistimed
And inappropriate
These days.

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