Tuesday, March 17, 2015

खोजती रहती हूँ जलावतन कर दिए नाविकों को - अरुंधती घोष की कविता – 2


अस्तराग 2 -

- अरुंधती घोष

तुम चले जाओगे, सो मैंने कतार में सजा रखा है अपने प्रेमियों को, शतरंज के मोहरों जैसा
मैं कर सकती हूँ ऐसा

तुम जानते हो
दिल टूटने पर खुशी-खुशी नहीं कर लेता स्वयं को वन में निर्वासित कोई भी

हो जाने दो जो हो हकबका गए दिल का, उसे सम्हाला हुआ है मैंने कितने औरों के साथ
कथा और है अभी

समझती हूँ मैं
सदा खोजती रहती हूँ जलावतन कर दिए नाविकों को जिन्होंने आग लगा दी थी अपने ही जहाज़ों में

अपनी जीभ पर बेपरवाह नन्हीं आकृतियाँ घसीटते सांप के डंक को मैं पहचानती हूँ
उठा लूंगी जोखिम

जो भी है, आओ
प्यार करो मुझे मेरे तरीके से, दूर रखो, पास रखो, दूर रखो मुझे

पोशाकों के तर्ज़ुमों को हाथों की पहुँच में रखती हूँ मैं अपनी
अब भी बचे हैं वे

सम्हाले होते हैं कई और भी मोहब्बतें, जो बने रहते हैं
अपने प्रेमियों के साथ

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अरुंधती की कविता पर लगी पहली पोस्ट: उसने डुबो लिया है इच्छा-पुरुषों का सारा प्रारब्ध 

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