Thursday, October 10, 2013

एक थी फ़्रीदा काहलो


फ़्रीदा काहलो मैक्सिको सिटी, मैक्सिको के कोयोकोआन में ६ जुलाई १९०७ को जन्मी थीं. मैक्सिको के महानतम चित्रकारों में शुमार होने वाली फ़्रीदा काहलो ने पेंटिंग की शुरुआत एक बस दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल होने के बाद की. बाद के वर्षों में फ़्रीदा काहलो राजनैतिक रूप से काफ़ी सक्रिय रहीं और उन्होंने अपने साथी कम्युनिस्ट पेन्टर दिएगो रीवेरा से १९२९ में विवाह किया. १९५४ में हुई अपनी मृत्यु से पहले उन्होंने अपना काम पेरिस और मैक्सिको में प्रदर्शित किया था.

शुरुआती जीवन

६ जुलाई १९०७ को जन्मी फ़्रीदा काहलो का वास्तविक नाम था माग्दालेना कारमेन फ़्रीदा काहलो ई काल्देरोन. फ़्रीदा अपने पारिवारिक घर में पली-बढीं. इस घर को कासा असूल यानी ब्लू हाउस के नाम से जाना जाता था. उनके पिता विल्हेल्म एक जर्मन फ़ोटोग्राफ़र थे जो मैक्सिको चले आये थे जहां उन्होंने फ़्रीदा की माँ मातील्दे से शादी कर ली थी. फ़्रीदा की दो बड़ी और एक एक साल छोटी बहन थी.

६ साल की उम्र में फ़्रीदा को पोलियो हो गया. इस वजह से उन्हें नौ माह बिस्तर में बिताने पड़े. बीमारी से उबरने के बाद फ़्रीदा ठीक से चल नहीं पाती थी क्योंकि पोलियो ने उनके दाएं पैर और टांग को खासा नुक्सान पहुंचा दिया था. उसकी चाल की लचक को  ठीक करने की नीयत से उसके पिता ने उसे सॉकर खेलने, तैराकी और कुश्ती करने को प्रेरित किया – उस समय इस तरह की बातों को मैक्सिकी समाज में सोचा तक नहीं जा सकता था.

पढ़ाई और दुर्घटना

१९२२ में फ़्रीदा ने ख्यात नेशनल प्रेपेरेट्री स्कूल में दाखिला लिया. स्कूल में पढ़ने वाली लडकियों की संख्या बहुत कम थी. इस माहौल में वह अपने मजाकिया और हलके-फुल्के अनौपचारिक व्यवहार की वजह से सब की चहेती बन गयी. और पारम्परिक मैक्सिकी कपड़ों और गहनों के प्रति अपने सहज आकर्षण की वजह से भी. उसी साल मशहूर मैक्सिकी कलाकार दिएगो रीवेरा उसी स्कूल में एक म्यूरल प्रोजेक्ट पर काम करने आये. स्कूल के लेक्चर हॉल में दिएगो रीवेरा को ‘द क्रियेशन’ शीर्षक म्यूरल पर काम करते आना देखना फ़्रीदा को भला लगता था. कुछ रपटें बतलाती हैं कि फ़्रीदा ने अपनी एक दोस्त को बताया था कि एक दिन वह दिएगो रीवेरा के बच्चे की माँ बनेगी.


स्कूल के दिनों में फ़्रीदा राजनैतिक और बौद्धिक रूप से एक सी सोच रखने वाले छात्रों के संपर्क में आई. उनमें से एक – आलेहान्द्रो गोमेज़ आरियास के साथ उसका प्रेम शुरू हुआ. १७ सितम्बर १९२५ को दोनों एक बस में साथ सफ़र कर रहे थे जब बस एक स्ट्रीटकार से टकरा गयी. फ़्रीदा सीधे स्टील की रेलिंग से टकराईं जो उनके कूल्हे में धंसकर दूसरी तरफ़ से बाहर निकल आई. फ़्रीदा को  गहरी चोटें आईं और उनकी रीढ़ और पेडू की हड्डियों में मल्टिपल फ्रैक्चर हो गए.

कई सप्ताह मैक्सिको के रेडक्रॉस हस्पताल में रहने के बाद वे स्वास्थ्यलाभ के लिए वापस घर आ गईं. इस दौरान उन्होंने पेंटिंग करना शुरू किया और अगले साल अपना पहला सेल्फ़-पोर्ट्रेट पूरा किया, जो आलेहान्द्रो गोमेज़ को बतौर तोहफ़ा मिला. इसके बाद उनकी राजनैतिक सक्रियता बढ़ी और उन्होंने यंग कम्यूनिस्ट लीग के अलावा मैक्सिकन कम्यूनिस्ट पार्टी को भी जॉइन कर लिया.

तूफानी शादी

१९२८ में फ़्रीदा काहलो फिर से रिवेरा के संपर्क में आई. रिवेरा ने उसके चित्रों को सराहा, और दोनों के दरम्यान एक रिश्ता बन गया. अगले ही साल दोनों ने शादी कर ली. शुरुआती सालों में फ़्रीदा काहलो अपने पति के साथ हर उस जगह होती थी जहां उसे अपना काम करना होता था. १९३० में वे सं फ्रांसिस्को, कैलिफोर्निया में थे जहाँ काहलो ने सां फ्रांसिस्को सोसाइटी ऑफ़ वीमेन आर्टिस्ट्स की छठी वार्षिक प्रदर्शनी में अपना काम ‘फ़्रीदा एंड दिएगो रिवेरा को सबके सामने रखा. वहां से वे न्यूयॉर्क गए फिर डेट्रॉइट.

फ़्रीदा और दिएगो रिवेरा

१९३२ में फ़्रीदा ने अपने काम में ज़्यादा ग्राफिक और सर्रियल तत्वों को अपने काम में जगह देना शुरू किया. उनकी पेंटिंग ‘हेनरी फ़ोर्ड हॉस्पिटल’ (१९३२) में एक विवस्त्र फ़्रीदा कई वस्तुओं के साथ नज़र आती हैं – एक भ्रूण, एक घोंघा, एक फूल, एक पेडू और बहुत कुछ – जो उसके चरों तरफ तैर रही हैं – लाल नसों सरीखे धागों से बंधी. जैसा कि बाकी के सेल्फ पोर्ट्रेट्स के साथ था – यह पेंटिंग भी बेहद व्यक्तिगत थी – उसके दूसरे गर्भपात को बयान करती हुई.  

हैनरी फ़ोर्ड हॉस्पिटल
न्यूयॉर्क में काहलो और रिवेरा का बिताया समय खासा विवादस्पद रहा था. नेल्सन रॉकफेलर द्वारा रिवेरा को ‘मैन एट द क्रॉसरोड्स’ शीर्षक एक म्यूरल बनाना था आर. सी. ए.बिल्डिंग के रॉकफेलर सेंटर में. रॉकफेलर को इस म्यूरल से शुरू में ही दिक्कत होने लगी क्योंकि रिवेरा ने इस म्यूरल में लेनिन का एक पोर्ट्रेट भी सम्मिलित कर लिया था. म्यूरल पर काम रुकवा दिया गया. अलबत्ता बाद में लेनिन के पोर्ट्रेट के ऊपर रंग पुतवाया गया. इस घटना के महीनों बाद दोनों वापस मैक्सिलो आ गए और सान आन्हेल में रहने लगे.

फ़्रीदा और रिवेरा का सम्बन्ध कभी भी पारम्परिक या सामान्य नहीं था – दोनों अगल बगल के घरों में रहते थे और दोनों के अपने अपने स्टूडियोज थे. फ़्रीदा को रिवेरा के अन्य स्त्रियों के साथ चलते रहने वाले संबंधों को देखकर दुःख होता था. रिवेरा ने फ़्रीदा की बहन  क्रिस्टीना तक से सम्बन्ध बना रखे थे. इस धोखे से त्रस्त फ़्रीदा ने विरोध जताने के तौर पर अपने लम्बे पारम्परिक केश कटा लिए. उसे एक बच्चे की बेतरह चाह थी पर १९३४ में हुए एक और गर्भपात ने उसकी आत्मा को तोड़ कर रख दिया.

फ़्रीदा ट्रोट्स्की और नतालिया के साथ
दोनों के बीच अलगाव के लम्बे दौर चले अपर १९३७ में निर्वासित सोवियत कम्यूनिस्ट लियोन ट्रोट्स्की और उसकी पत्नी नतालिया की सहायता करने को दोनों फिर साथ आए. ट्रोट्स्की को मैक्सिको में राजनैतिक शरण मिल गयी थी. उन्हें ब्लू हाउस में रहने का आमन्त्रण दिया गया. एक समय जोसेफ़ स्टालिन के प्रतिद्वंद्वी रहे ट्रोट्स्की को भय था कि उनकी हत्या कर दी जाएगी. कहा जाता है कि इस दौरान ट्रोट्स्की और फ़्रीदा के बीच एक संक्षिप्त अफेयर भी चला.

कासा असूल
कला और सेल्फ़ पोर्ट्रेट्स

हालांकि फ़्रीदा ने ख़ुद को सर्रियलिस्ट कभी नहीं माना पर १९३८ में उनकी मुलाक़ात सर्रियल आन्दोलन के एक महत्वपूर्ण स्तम्भ आंद्रे ब्रेतों से हुई. उसी साल न्यूयॉर्क सिटी गैलरी में फ़्रीदा की एक चित्र प्रदर्शनी लगी जिसमें प्रदर्शित सभी पच्चीस पेंटिंग्स बिक गईं. परिणामतः काहलो को दो कमीशन मिले, जिनमें से एक मशहूर संपादिका क्लेयर बूथ लूस का प्रस्ताव शामिल था.

काहलो से कहा गया कि वे लूस और ख़ुद अपनी एक कॉमन मित्र अभिनेत्री डोरोथी हेल का पोर्ट्रेट बनाएं. डोरोथी ने उसी साल एक ऊंची इमारत से कूद कर आत्महत्या कर ली थी. यह पेंटिंग डोरोथी की दुखी माता को तोहफे में दी जानी थी. पारम्परिक पोर्ट्रेट बनाने की जगह फ़्रीदा ने डोरोथी की त्रासद छलांग की कहानी को चित्रित किया. जहां आलोचकों ने ‘द सुइसाइड ऑफ़ डोरोथी हेल’ को हाथों हाथ लिया, क्लेयर बूथ लूस उसे देखकर खौफज़दा हो गईं.

द सुइसाइड ऑफ़ डोरोथी हेल

१९३९ में फ़्रीदा कुछ समय रहने को पेरिस आईं. वहां उन्होंने अपनी पेंटिंग्स दिखाना शुरू किया और समकालीन कलाकारों जैसे मार्सेल द्यूशैम और पाब्लो पिकासो से मित्रता की. उसी साल उन्होंने तलाक ले लिया. इसी दौरान उन्होंने अपना सबसे प्रसिद्ध चित्र तैयार किया – ‘द टू फ़्रीदाज़’ (१९३९). पेंटिंग में फ़्रीदा के दो रूप अगल बगल बैठे हुए हैं और दोनों के दिल खुले हुए हैं. एक फ़्रीदा तकरीबन पूरी सफ़ेद लिबास में है, उसका दिल का काफ़ी नुक्सान हो चुका है और कपड़ों पर खून के निशान हैं. दूसरी फ़्रीदा चटख लिबास में है और उसका ह्रदय सुरक्षित है. ये फ़्रीदा के “प्यार पाए हुए” और “प्यार न पाए हुए” संस्करण माने जाते हैं.

द टू फ़्रीदाज़
अटपटी बात यह है कि फ़्रीदा लम्बे समय तक तलाकशुदा नहीं रहीं. दोनों ने १९४० में दोबारा विवाह कर लिया अलबत्ता दोनों अलग-अलग जिंदगानियां जीते रहे. और अगले वर्षों में दोनों के अलग-अलग लोगों के साथ अफेयर्स चलते रहे.

१९४१ में फ़्रीदा को मैक्सिकी सरकार ने प्रस्ताव दिया कि वे पांच महत्वपूर्ण मैक्सिकी महिलाओं के पोर्ट्रेट तैयार करें. फ़्रीदा इस प्रोजेक्ट को पूरा न कर सकीं. उसी साल उनके प्रिय पिता का देहांत हुआ और ख़ुद वे तमाम बीमारियों से जूझ रही थीं. इन सबके बावजूद उनका अपना काम लगातार बेहतर होता गया और तकरीबन हर प्रदर्शनी में उसे जगह मिला करती थी.

द ब्रोकन कॉलम
१९४४ में फ़्रीदा ने ‘द ब्रोकन कॉलम’ पेन्ट की. इसमें तकरीबन न्यूड फ़्रीदा की देह का मध्यभाग खुल गया है और उसकी रीढ़ की हड्डी सज्जाकारी किये जाने वाले एक छिन्न-भिन्न कॉलम की तरह नज़र आती है. उसने सर्जिकल ब्रेसेज़ भी पहने हुए हैं और उस्की त्वचा में कीलें खुभी हुई हैं. अपनी कला के माध्यम से यहाँ भी वे अपनी शारीरिक चुनौतियों से आपको परिचित करती जाती हैं. इस समय तक उनके कई ऑपरेशन हो चुके थे और अपनी रीढ़ को सीधा रखने के लिए उन्हें तमाम तरह के कोर्सेट्स पहनने होते थे.

बिगड़ता स्वास्थ्य और देहांत

१९५० के आसपास उनकी हालत बहुत बिगड़ चुकी थी. दाएं पैर में गैंगरीन का पता चलने के बाद फ़्रीदा को नौ माह अस्पताल में रहना पड़ा और उनके अनेक ऑपरेशन करने पड़े. इसके बावजूद वे पेन्ट करती रहीं और अपनी सीमित गतिमानता के बावजूद राजनैतिक काम भी उनके एजेंडे से बाहर नहीं गया. १९५३ में मैक्सिको में फ़्रीदा की पहली एकल प्रदर्शनी लगी. वे बिस्तर पर थीं लेकिन उन्होंने प्रदर्शनी के उद्घाटन में मौजूद रहने का मौका हाथ से नहीं जाने दिया. वे एम्बुलेंस से वहां पहुँचीं जहां उनके वास्ते एक पलंग लगाया गया जिस पर लेटे लेटे उन्होंने दर्शकों से बातें कीं. फ़्रीदा की ख़ुशी ज्यादा दिन नहीं चल पाई क्योंकि जल्दी ही गैंगरीन से प्रभावित उनकी दाईं टांग को काट देना पड़ा.  

भयंकर डिप्रेशन से जूझ रही फ़्रीदा को स्वास्थ्य बिगड़ जाने के कारण अप्रैल १९५४ में दुबारा भर्ती कराया गया – यह भी कहा जाता है कि इस दौरान उन्होंने आत्महत्या की कोशिश की थी. फिर दो माह बाद न्यूमोनिया के चलते वे अस्पताल में थीं. इस सब के बावजूद उनकी राजनैतिक सक्रियता बती रही. अमरीका द्वारा गुआटेमाला के राष्ट्रपति हकोबो आर्बेंज़ के तख्तापलट के विरोध में हुए २ जुलाई को एक प्रदर्शन में वे शामिल थीं. सैन्तालीसवीं वर्षगाँठ के करीब हफ़्ते भर बाद १३ जुलाई को अपने बचपन के घर कासा असूल में फ़्रीदा की मृत्यु हो गयी. उनकी मृत्यु को लेकर तरह तरह की अटकलें लगी जाती रही हैं. बीमारियों की बाद दरकिनार कर कई लोग कहते हैं कि संभवतः फ़्रीदा ने आत्महत्या की थी.

फ़्रीदा को दफनाया नहीं गया था बल्कि उनका दाह संस्कार हुआ था और अस्थियाँ परिवारजनों को दे दी गईं. कोयोकान मैक्सिको की लोंद्रेस स्ट्रीट पर मौजूद उनके घर में उनका अस्थिपात्र सुरक्षित है.  

फ़्रीदा की विरासत

'फ़्रीदा' फ़िल्म का पोस्टर 
मृत्यु के बाद फ़्रीदा की ख्याति बढ़ती बढ़ती गयी है. १९५८ में कासा असूल यानी ब्लू हाउस को बतौर संग्रहालय खोल दिया गया. १९७० के दशक के नारीवादी आन्दोलन ने फ़्रीदा के काम में नई दिलचस्पी लेना शुरू किया और फ़्रीदा को स्त्री-रचनात्मकता के सिम्बल के रूप में प्रतिष्ठित किया गया. १९८३ में हेडन हेरेरा की किताब ‘अ बायोग्राफी ऑफ़ फ़्रीदा काहलो’ ने इस महान पेन्टर के प्रति लोगों के मन में नई जिज्ञासा पैदा की.

बिलकुल हाल की बात करें तो २००२ में जूली टिमोर ने ‘फ़्रीदा’ नाम से एक फ़िल्म बनाई जिसमें सलमा हायेक ने फ़्रीदा का रोल किया था और फ़िल्म को छः अकादेमी अवार्ड्स के लिए नामित किया गया.

इस औपचारिक सी जीवनी-नुमा पोस्ट के बाद फ़्रीदा काहलो के बारे में और बातें जल्दी बताता हूँ.

2 comments:

HARSHVARDHAN said...

आज की बुलेटिन जगजीत सिंह, सचिन तेंदुलकर और ब्लॉग बुलेटिन में आपकी इस पोस्ट को भी शामिल किया गया है। सादर .... आभार।।

HARSHVARDHAN said...

आज की बुलेटिन जगजीत सिंह, सचिन तेंदुलकर और ब्लॉग बुलेटिन में आपकी इस पोस्ट को भी शामिल किया गया है। सादर .... आभार।।