Wednesday, July 31, 2013

रफ़ी साहब, मोहम्मद अली और दो चार दिलचस्प बातें


...अच्छी घड़ियां पहनने और गाड़ियों के भी वे बेहद शौकीन थे. लंदन में सत्तर के दशक में गाड़ियों के रंग बहुत गहरे और चमकीले होते थे. जैसे तोतई हरा, चमकीला नीला, लाल,गहरा हरा, पीला, नारंगी वगैरा. अब्बा को वो इतने पसंद आते कि वो अपनी फिएट कार के लिए भी पसंद कर लेते. इसके अलावा, अपनी कार के लिए रीयर व्यू मिरर, व्हील कैप, साइड मिरर, हार्न, कार फ्रेशनर, स्टीयरिंग व्हील कवर भी लाते. बेटे जब उनसे कहते कि “अब्बा, ये रंग मुंबई के लिए ठीक नहीं है, ये तो सिर्फ यहीं पर अच्छे लगते हैं” तो उनका जवाब होता, “यार, गाड़ी जरा धांसू लगनी चाहिए.” बहरहाल, उन्होंने अपनी फिएट कार को अपनी मर्जी मुताबिक तोतई हरा, पीला, नारंगी और चमकीला नीला तक रंगवाया. सारी मुंबई में उनकी फिएट अलग ही नजर आती थी.

अपनी जिंदगी में वो तालीम की कमी को बहुत महसूस करते थे. लंदन, अमेरिका, भारत, कहीं पर भी हों, वो लाइव इंटरव्यू और सवाल-जवाब पूछे जाने से बहुत घबराते थे. उनकी कोशिश यही होती थी कि कोई बहाना बना कर टाल दें, कहते, “अपन को बड़ी-बड़ी बातें घुमा-फिराकर करना नहीं आता. ये तो बोलने और लिखने वालों का काम है. अपन को तो सिर्फ गाने से मतलब है. अपना काम ही अपनी पहचान है.”

सही मायनों में तो वो ठीक से बात भी नहीं कर पाते थे. बोलते-बोलते बीच में घबरा कर गड़बड़ा जाते. मुझे तो समझ में नहीं आता था कि वो गाने कैसे गाते हैं.

एक दिन काफी दिनों तक बात न होने पर मेरी अम्मी ने फोन पर उनसे शिकायत करते हुए कहा, साहब, आप तो हमें कभी याद ही नहीं करते. फिर हंस कर बोलीं, “आपका ही एक गाना है - मतलब निकल गया है तो पहचानते नहीं...” (फिल्म अमानत, 1977). सुनकर अब्बा शरमा गए, फिर इतना हंसे कि उनकी आंखों में आंसू आ गए. कहने लगे, “नहीं, बीजी, ऐसी कोई बात नहीं है. डाली आपको बताएगी”, कहकर फोन मेरे हाथ में दे दिया.


खेलों में क्रिकेट के अलावा अब्बा को कुश्ती और बाक्सिंग देखना भी बहुत पसंद था. मुहम्मद अली के वो जबरदस्त फैन थे. ये सन 1977 की बात है. अब्बा एक शो करने शिकागो गए हुए थे. जब शो के आयोजक को पता लगा कि मुहम्मद अली से मिलना रफ़ी साहब की दिली तमन्ना है तो उन्होंने मुलाकात करवाने की कोशिश की.

मुहम्मद अली से मिलना कोई आसान काम तो था नहीं, लेकिन जब उन्हें बताया गया कि जिस तरह आप बाक्सिंग के लिए सारी दुनिया में जाने जाते हैं, उसी तरह मुहम्मद रफ़ी अपनी गायकी के लिए सारी दुनिया में मशहूर हैं तो वो इस मुलाकात के लिए खुशी से तैयार हो गए.



(रफ़ी साहब की पुत्रवधू यासमीन ख़ालिद रफ़ी की किताब ‘मुहम्मद रफ़ी: हमारे अब्बा-कुछ यादें’ से एक टुकड़ा)

No comments: