Saturday, September 29, 2012

प्लास्टिक पन्नी के राज गली कभो माटी के राज होई अलबीला


मृत्युंजय पुराने मित्र हैं. कवि हैं. संगीत के जानकार हैं. उम्दा शख्स हैं. उनका एक बढ़िया ब्लौग भी है – मृत्युंजय का मृत्युबोध.

कल उन्होंने मुझे मेल से अपने दस ताज़ा सवैये भेजे हैं. पेश कर रहा हूँ –

(क)

आगि क बाट अकास अंगार चला सखि देस के रौरव बीचे
पेड़े पे रेती इनारे में रेती पराती में रेती बरौनी के नीचे
ऊसर कांकर बंजर पाथर हड्डी से तोरि पसीना से सींचे
फांसी के फूल कपास उगै गोइयाँ चला मौत के खेतहिं बीचे

(ख)

ई बिधना बड़ कूर मजूरी के बीच अंगूठा क घाव सड़ैला
बानर दिष्टि छछुंदर देहिं अ पईया क धान से पाला पड़ैला
नेह क दीप भभक बुति जाय सराब क गंध रसोई तड़ैला
जागत नैनन नीर ढुरै अरु सोवत आँखिन सप्न गड़ैला

(ग)

पाथर हाथ से पाथर काटत पाथर देहिं में बज्र करेजा
छूटि हथौड़ा अंगूठा पे खच्च से तलफत आपन दर्द धरेजा
होई का हैं बिधि के गरिऔले से चूसि अंगूठा के पीर हरेजा
आंसुन के भितरावा गलावा अ पाथर संगे ई जुद्ध लरेजा

(घ)

भूखि के राज में मट्टी पियासल फाटल देहिं अंगौछा से ढांपे
धोती क गाँठ गड़े करियाहिं लिलार क रेख अकासे में कांपे
सपनन में दुलराय जगावे अ आँखिन आगि के ताकत नापे
बूढ़ भई ई जमीन अगोरति अस्सिल बीरन आय मिलापे

(ङ)

जेठ के मासे निचाट निदाघ में होठ के ऊपर की पपरी सी
आगि बवंडर पानी क झार के बीचहिं घूम रही चकरी सी
मरि-मरि जीवति आस बटोरती सप्न सजावति जो भंवरी सी
ऊ अँखियाँ तकलीफ के जाल के भीतर देखऽ मरी मछरी सी

(च)

ई बिजुरी चमकावति दुःख ई बादर तोप बनूक चलाई
रोपत रोवत देहिं गलै औ कभू न मिलै तिन सेर रोपाई
धाने के खेत क टूटल मेंड पे कर्ज के खारिज दाखिल माई
देसे के दीया फतिंगा मजूर क पांख जरै करपूर की नाई

(छ)

सांस के आंच परान में बोवै बिरान में रोवै घरे में कलंदर
मूंडी चोराय के आँचर भीतर सुलगत अफनत अंदर अंदर
नेह के बाति पे ताके अकास ज क्रोध करीं त चुपाय भयंकर
का वही देस बसैं हतियार जो खींचेलें सत्त मशीन के मंतर

(ज)

परिवार के आरर डार सखी नहिं डारो कभी निज सप्न के झूला
रैम्प अ मॉडल, कैम्प-सिपाही, त आधी मजूरी अ चोख त्रिशूला
फांसी अ गोली अ डॉक्टर वैद स हाथ मिलाय करैं निरमूला
ई नगरी बिच प्रेम करै जे ते खरहा के सींघ आकासे क फूला

(झ)

सांवर-सांवर आँखि बड़ी-बड़ि चोटी क फीता क रंग सोहाला
ई दुनिया के अन्हारे के बीच में तारा क पांति उ दांत बुझाला
नान्ह क मुट्ठी में जांगर रोपि ज आंखिन में अनबूझ देखाला
ई धरती ह टिकी तोहरे बल बाकी त देस पाताले के जाला

(ञ)

माटी में खेलत खात नहात ई माटी क नेह ह माटी क लीला
माटी क फूल अकास पताल भ धूरि के बादर से मन गीला
माटी के नद्दी में माटी क नाव ह माटी क सुग्गा क बोल रसीला
प्लास्टिक पन्नी के राज गली कभो माटी के राज होई अलबीला

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