Friday, July 6, 2012

बारिशों पर परवीन शाकिर की दो और नज्में


मौसम


चिड़िया पूरी तरह भीग चुकी है
और दरख़्त भी पत्ता पत्ता टपक रहा है
घोंसला कब का बिखर चुका है
चिड़िया फिर भी चहक रही है
अंग अंग से बोल रही है
इस मौसम में भीगते रहना
कितना अच्छा लगता है


फ़ोन

मैं क्यों उसको फ़ोन करूं
उसके भी तो इल्म में होगा
कल शब
मौसम की पहली बारिश थी

1 comment:

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह...........

बहुत सुन्दर...दोनों कवितायें

अनु