Tuesday, January 31, 2012

प्रोफ़ेसर पी. लाल को सैल्यूट!


अच्छी किताबें पढ़ने वाले के शौकीनों के घर में राइटर्स वर्कशॉप, कलकत्ता की एकाध किताबें ज़रूर पाई जाती हैं. अपने गेट अप में ये किताबें सब से अलग नज़र आती हैं. हैण्ड टाइपसेट में स्थानीय भारतीय प्रेस में छपी हैंडलूम की साड़ी के कपड़े से मढ़ी हर किताब अपने आप में अलग नज़र आने के बावजूद किसी की भी पहचान में आ सकती हैं. इन किताबों के प्रकाशक, संपादक, प्रूफरीडर, प्रकाशकीय सचिव और सम्पादकीय सहायक का काम एक ही व्यक्ति करता रहा. प्रोफ़ेसर पी. लाल इस लिहाज़ से एक अद्वितीय व्यक्ति थे. अपने जीवनकाल में इस ज़िद के पक्के मेहनती इंसान ने तीन हज़ार से भी ज्यादा किताबें छपीं. अकेले!

विक्रम सेठ, प्रीतीश नंदी, चित्रा बनर्जी जैसे लेखकों की पहली किताबें प्रोफ़ेसर पी. लाल ने ही छपीं जब इन्हें कोई नहीं जानता था. कॉलेज के समय के मेरे गुरूजी प्रोफ़ेसर सैयद अली हामिद (जिनके मजाज़ और क्रिस्टोफर मार्लो के अनुवाद आप कबाड़खाने में पढ़ चुके हैं और जो http://hamidcauldron.blogspot.com नाम से अपना ब्लौग संचालित करते हैं) की किताब भी इन्ही लाल साहब ने छापी थी.

२८ अगस्त १९२९ को जन्मे पुरुषोत्तम लाल एक प्रकाशक बाद में थे, कवि-निबंधकार-अनुवादक और शिक्षाविद पहले. राइटर्स वर्कशॉप तो सन १९६८ में अस्तित्व में आई. कलकत्ते के सेंट ज़ेवियर कॉलेज में अंग्रेज़ी के प्रोफेसर लाल साहब ने अमरीका के कई संस्थानों में विज़िटिंग प्रोफ़ेसर के तौर पर भी काम किया.


एक लेखक के रूप में पी. लाल ने आठ कविता संग्रह, दर्ज़न से अधिक साहित्य-समीक्षा की पुस्तकें, एक संस्मरण, कई बालोपयोगी किताबें लिखने के अलावा दर्जनों अनुवाद किए - विशेषतः संस्कृत से अंग्रेज़ी में. महाभारत का उनका अंग्रेजी अनुवाद सबसे अधिक प्रामाणिक माना जाता है जो अठ्ठारह खण्डों में छाप चुका है. उन्होंने इक्कीस उपनिषदों का भी अंग्रेज़ी अनुवाद किया. संस्कृत के अन्य ग्रंथों के अलावा उन्होंने प्रेमचंद और टैगोर को भी अंग्रेज़ी में अनूदित किया.

अपने जीवन काल में उन्होंने छात्रों, कवियों और लेखकों की कई पीढ़ियों के लिए प्रेरणा-स्रोत का काम किया. बेहद सम्मोहक व्यक्तित्व के धनी पी. लाल ८१ की आयु में ३ नवम्बर २०१० को दिवंगत हुए. उनके द्वारा प्रकाशित एक युवा कवि इन्द्रजीत हज़ारा ने उन्हें बहुत प्यार से याद करते हुए उन्हें बॉब द बिल्डर की तर्ज़ पर पी. लाल द प्लंबर के नाम से संबोधित करते हुए बताया है किस तरह लाल साहब ने हजारा का कविता-संग्रह तब छाप दिया था जब वे सिर्फ १८ के थे. इस संग्रह को छापने के साथ-साथ पी. लाल इन्द्रजीत हज़ारा के पहले काव्य-गुरु भी बन गए थे.

ऐसे असंख्य लेख उनके बारे में आप खोज सकते हैं.

उनके बारे में लम्बे समय से लिखना चाहता था पर न जाने क्यों यह काम टलता रहा. आज सुबह अपनी लाइब्रेरी में एक किताब खोजते हुए राइटर्स वर्कशॉप वाली कुछ किताबों पर निगाह पड़ते ही मैंने फैसला किया कि हर हाल में इस पोस्ट ने आज और अभी लिखा जाना है.

ऐसे कर्मठ लोग बहुत कम जन्मते हैं और खासतौर पर हमारी हिन्दीभाषी गऊ पट्टी में इतना काम कर पाने की जिजीविषा शायद ही कहीं नज़र आई हो.

स्वर्गीय प्रोफ़ेसर पी. लाल को सैल्यूट!

3 comments:

अनूप शुक्ल said...

स्वर्गीय प्रोफ़ेसर पी. लाल को सैल्यूट! श्रद्धांजलि!

नीरज गोस्वामी said...

प्रोफ़ेसर पी. लाल इस लिहाज़ से एक अद्वितीय व्यक्ति थे. अपने जीवनकाल में इस ज़िद के पक्के मेहनती इंसान ने तीन हज़ार से भी ज्यादा किताबें छपीं. अकेले!

कमाल कर दिया पी.लाल जी ने...ऐसे इंसान हमारे प्रेरणा स्त्रोत्र हैं...

नीरज

मनोज पटेल said...

सलाम!!