Wednesday, January 25, 2012

ईश्वर और गीध

ईश्वर और गीध


बहुत पहले जब कायदा कानून नही था , गीध बहुत ताक़त वर पक्षी था, और इनसानी बच्चों को खा जाया करता था . वे हमेशा अकेले खेल रहे बच्चों की ताक मे रहता और मौका पाते ही उन्हे उठा ले जाता था . एक गाँव मे लोग गीध के इस कृत्य से परेशान हो गए थे. अतः उन्हो ने ईश्वर के पास शिकायत लगाई. प्रभु इस गीध का कुछ करो वर्ना यह तो हमारी संतति को आगे बढ़ने ही न देगा . ईश्वर ने उन्हे आश्वस्त किया और गीध के पास गया. गीध उस समय बच्चे का गोश्त चबा रहा था. ईश्वर ने गीध से पूछा , तुम इंसानी बच्चों को क्यों उठा ले जाते हो? गीध ने कहा क्यों कि मुझे उन का माँस बहुत पसन्द है. ईश्वर ने कहा , यदि युम इन्हे छोड़ कर कुछ और खाना शुरू कर दो तो तुम्हे अपना मंत्री बनाऊँगा. गीध ने उत्तर दिया, तुम मुझे इस से बेहतर माँस बताओ, तो आगे से इसे मुँह से नही लगाऊँगा. ईश्वर सोचने लगा, इंसानी माँस से बेह्तर और कौन सा माँस हो सकता है ? उसे कुछ नही सूझा. फिर उस ने धमकाया, देखो मै यहाँ का राजा होता हूँ तुम्हे मेरी बात माननी चाहिए. गीध ने कहा , राजा उसे मानता हूँ जिस के पास ताक़त होती है. ईश्वर का चेहरा उतर गया. उसे गीध की ताक़त का पता था . लेकिन प्रकट मे बोला, बहुत घमण्ड है अपनी ताक़त पर ? गीध ने कहा कि उसे कोई घमण्ड वमण्ड नहीं है, वह सिद्ध कर सकता है कि उस के पास ताक़त है. ईश्वर की आँखों मे कुटिल चमक आ गई. बोला अच्छा एक गेम खेलते हैं . यदि तुम जीत गए तो तुम्हे बच्चे खाने की अनुमति मिल जाएगी. हार गए तो इनसानी बच्चे तो क्या , किसी भी ज़िन्दा जानवर का शिकार नही कर पाओगे . ठीक है बताओ क्या गेम है ? ईश्वर ने शर्त रखी-- - मक्खन के ढेले को अपनी चोंच से टुकड़े टुकड़े करना होगा . गीध हँसा...... मंज़ूर है. रखो इस पत्थर पे मक्खन का ढेला. ईश्वर अपनी कुटिल बुद्धि पर प्रसन्न हो रहा था...... गीध शोर मचाते हुए गोल गोल ऊपर उड़ने लगा. उस का कंफिडेंस देख कर ईश्वर संशय मे पड़ गया. कहीं इस ने मक्खन के टुकड़े कर दिए तो ? उसे एक चाल सूझी. जब गीध ऊपर उड़ रहा था तो उस ने चुपके से मक्खन की जगह पर एक सफेद चकमक पत्थर रख दिया. उधर गीध तीर की तरह लक्ष्य पर झपटा. जब उस की वज्र जैसी चोंच चकमक पत्थर से टकराई तो पत्थर के सैकड़ों टुकड़े हो गये. लेकिन खुद गीध भी बेहोश हो गया.
अब क्या करें ईश्वर तो हार गया ! लेकिन ईश्वर को कैसे हरा दें ? तो बच्चो, ईश्वर ने यह किया कि चुपके से चकमक पत्थर समेट के एक तरफ कर दिए, और मक्खन के ढेले मे बेहोश गीध की चोंच घुसा कर चलता बना. होश मे आने पर गीध ने देखा कि मक्खन का ढेला टूटा न था फक़त एक छेद भर निकली थी उस में. गीध को अपनी घमण्ड का अहसास हुआ. तब से गीध अपना बचन निभा रहा है. केवल मरे हुए जानवरों को खा कर गुज़ारा कर रहा है.

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

लगा गहरा, दिखा हल्का...