Friday, January 27, 2012

नए तिब्बत की कविता - ४

तेनजिन त्सुंदे की कविताओं की सीरीज जारी है -


क्षितिज

अपने घर से तुम पहुँच गए हो
यहाँ क्षितिज तलक.
यहाँ से अगले की तरफ
ये चले तुम.

वहां से अगले
अगले से अगले
क्षितिज से क्षितिज.
हर कदम है एक क्षितिज.

कदमों की गिनती करो
और उनकी संख्या याद रखना.

सफ़ेद कंकडों को पहचान लो
और विचित्र अजनबी पत्तियों को.
घुमावों को चीन्ह लो
और चारों तरफ की पहाड़ियों को
क्योंकि तुम्हें
दोबारा घर आने की ज़रूरत पड़ सकती है.

3 comments:

विवेक रस्तोगी said...

चिन्हों को याद रखना जीवन में बहुत जरूरी है।

अजेय said...

मुझे त्सुण्डे की यह कविता ज़्यादा महत्वपूर्ण लगती है ......वस्तुतः वे सभी कविताएं , जहाँ वह घरवापसी की उम्मीद जताता है.... लेकिन आश्चर्य , कि मेरे मित्रो ने इसे नकली कविता कह कर अनुवाद करने से मना कर दिया. उन के अनुसार एक आम तिब्बती को न तो ऐसा कोई भ्रम है न ही ऐसा कोई मोह वह पालता है . वह भारत को अपना चुका है . विशेष रूप से * हिमालय* को ......तिब्बतियों की घरवापसी एक राजनीतिक स्वप्न हो सकता है..... एक व्यक्तिगत दिली ख्वाहिश नहीं .

प्रवीण पाण्डेय said...

काश क्षितिज पथ सरल बना हो,
हमें राह भर गरल निला बस..