Sunday, January 8, 2012

मेरी आँखें चमकने लगी हैं सितारों की तरह

हालीना पोस्वियातोव्सका (१९३४-१९६७)  की कवितायें पढ़ते समय हम इस बात से सजग रहते हैं कि पोलिश कविता की समृद्ध और गौरवमयी परम्परा में वह एक महत्वपूर्ण   बेहद जरूरी कड़ी हैं मेरे द्वारा किए गए ( किए जा रहे) उनकी  बहुत - सी कविताओं के अनुवाद  आप यहाँ हमारे  इस ठिकाने  'कबाड़ख़ाना' प,' , 'कर्मनाशा' पर तथा 'शब्द योग' , 'अक्षर' कुछ अन्य  पत्र - पत्रिकाओं में  पढ़ चुके हैं। संतोष है  कि विश्व कविता से प्रेम रखने वाली हिन्दी बिरादरी में इन्हें पसन्द किया गया है। आभार।  इसी क्रम में आज प्रस्तुत है एक  उनकी  एक और कविता 'विवश राग': 


हालीना पोस्वियातोव्सका की कविता

विवश राग 
( अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह )

मैंने प्रेम के वृक्ष से तोड़ ली एक टहनी
और उसको
दबा दिया मिट्टी की तह में
देखो तो
किस कदर खिल उठा है मेरा उपवन।

संभव नहीं
कि कर दी जाय प्रेम की हत्या
किसी भी तरह।

यदि तुम उसे दफ़्न कर दो धरती में
तो वह उग आएगा दोबारा
यदि तुम उसे उछाल दो हवा में
तो पंख बन जायेंगे उसके पल्लव
यदि तुम उसे गर्त कर दो पानी में
तो वह तैरेगा बेखौफ़ मछली की तरह
और यदि ज़ज्ब दो उसे रात में
तो और निखर आएगी उसकी कान्ति।

इसलिए
मैंने चाहा कि प्रेम को दफ़्न कर दूँ अपने हृदय में
लेकिन मेरा हृदय बन गया प्रेम का वास- स्थान
मेरे हृदय ने खोले अपने हृदय - द्वार
इसकी हृदय - भित्तियों को भर दिया गीत - संगीत से
और मेरा हृदय नृत्य करने लगा पंजों के बल।

इसलिए
मैंने प्रेम को दफ़्न कर लिया अपने मस्तिष्क में
किन्तु लोग पूछने लगे
कि क्यों मेरा ललाट हो गया है फूल की मानिन्द
कि क्यों मेरी आँखें चमकने लगी हैं सितारों की तरह
और क्यों मेरे होंठ हो गए हैं
सुबह की लालिमा से भी अधिकाधिक सुर्ख।

मैंने आत्मसात कर लिया प्रेम को
और सहेज लिया इसे सहज ही
किन्तु इसके आस्वाद के लिए मैं हूँ अवश
लोग पूछते हैं कि क्यों मेरे हाथ बंधनयुक्त हैं प्रेम से
और क्यों मैं हूँ उसकी परिधि में पराधीन।

5 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

प्रेम हृदय में दफन रहे,
बाहर सत्ता-कफन रहे

avanti singh said...

मैंने आत्मसात कर लिया प्रेम को
और सहेज लिया इसे सहज ही
किन्तु इसके आस्वाद के लिए मैं हूँ अवश
लोग पूछते हैं कि क्यों मेरे हाथ बंधनयुक्त हैं प्रेम से
और क्यों मैं हूँ उसकी परिधि में पराधीन।....shabd nahi rachna ki taarif ke liye.....behtreen....bdhai sweekaren....

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

bahut sundar ..Bhavnaon ka ped bhi pura khil gaya is Kavita me.. usrja roop badal sakti hai par khatam nahi hoti... Yaha bhi siddh huva.. Umda

विभूति" said...

बेहतरीन और बहुत कुछ लिख दिया आपने..... सार्थक अभिवयक्ति......

दीपिका रानी said...

जितनी सुंदर कविता.. उतना बेहतरीन अनुवाद! बधाई