Saturday, September 10, 2011

सिगरेट, सिनेमा, सहगल और शराब - 7

(पिछली पोस्ट से जारी)

एक पुराने गीत से नयी मुलाक़ात


ये कहकर उन्होंने अपने एक मुलाज़िम को आवाज़ दी तो हुक़्क़ा आ गया। उन्होंने कहा, ‘सज्जाद हुसैन उस्ताद अली बख़्श (मीना कुमारी के पिता) के असिस्टेंट थे। अली बख़्श को एक नयी फ़िल्म का संगीत मिला वो थी दोस्त। एक दिन अली बख़्श बीमार होने की वजह से रिकार्डिंग पर नहीं आए। उनकी ग़ैर हाज़िरी में सज्जाद हारमोनियम में धुन बजाने लगे जिसे सुनकर नूरजहाँ वहाँ आ गईं। उन्हें वह धुन इतनी अच्छी लगी कि अली बख़्श को निकाल दिया गया और सज्जाद को ले लिया गया। हाजीभाई ने फिर मेरी तरफ़ घूर कर देखा और कहने लगे, ‘ऐसे इंसान को बड़ों का आशीर्वाद नहीं मिल सकता और उसके बग़ैर बात नहीं बनती। लेकिन हम दाद देंगे नूरजहाँ की। फ़िल्मी गीतों में एक क्रांति लाने में उनका हाथ था। कभी-कभी इंसान को ज़िंदगी का कारोबार बढ़ाने के लिए ग़लत काम भी करना पड़ता है।’ ये कहकर हाजीभाई उठ कर अंदर गए और चमड़े का एक अटैची केस उठाकर लाए। नौकर को आवाज़ दी, जो पहले एक छोटी टेबल लेकर आया, उस पर ग्रामोफ़ोन रखा। हाजीभाई ने उसमें चाबी भरी। नयी सूई लगाई और फिर बस्ते से एक रिकार्ड निकाला। उसको रखा और वह गाना जो हमने बरसों नहीं सुना था, ‘कोई प्रेम का देके संदेसा हाय लूट गया, हाय लूट गया’, फिर हमारे कानों तक पहुँचा।

कोई प्रेम का देके संदेसा हाय लूट गया, हाय लूट गया।



गाना ख़त्म होने पर उन्होंने कहा, ‘यह गाना है ही नहीं। यह ज़िंदगी की नाकामियों पर, इंसान की एक ठंडी साँस है। तो ये है सच्चाई।’ यह कहते हुए वह रिकार्ड उठाने लगे तो मैंने कहा, ‘इसके पीछे क्या है, वह भी बजाकर सुनाइये।’ तो उन्होंने मेरे गाल पर चुटकी काटी और कहा, ‘मैं तो हूँ चोर, तू डाकू बनेगा। यह सफ़र जो तुमने इस रिकार्ड की एक साइड सुनने के लिए किया, वह दोबारा करना तब हम दूसरी साइड सुनाएँगे।’ रिकार्ड को झोले में डालकर अटैची के अंदर रख लिया। रिकार्ड हमारी आँखों से ओझल हो गया जो आज तक ओझल है।

फिर कहने लगे, हर मुजरिम को अपने जुर्म का भार उठाने की थकान होती है, इसीलिए उसको अपना जुर्म बाँटकर हल्का करना होता है। आज रात वही हो रहा है। मैं आप लोगों का शुक्रगुजार हू, आप लोग भी इसे बाँट रहे हैं क्योंकि यह रिकार्ड मैंने चुराया था। मैं आपको पहले की कह चुका हूँ कि मैं सच्चा हाजी नहीं हूँ। लेकिन चोरी मेरा पेशा नहीं है। किसी बुज़ुर्ग को छोटों को नसीहत देने का कोई अधिकार नहीं, जब तक वह ख़ुद ऐसा अघिकार हासिल नहीं करना चाहता। और मुझे पास बुलाकर बताया कि ये चोरी उन्होंने कैसे की।

एक रात मोरोगरो स्टेशन पर एक गाड़ी देर तक रुकी। एक हिंदुस्तानी सज्जन उसी समय हिंदुस्तान से लौटे थे। वह तबोरा जा रहे थे। वक़्त था, उनसे मुलाक़ात हुई, बातें होने लगीं। उन्होंने बताया कि वह इंडिया से कुछ रिकार्ड लेकर आए हैं। इनमें से कुछ दारेस्सलाम में उन्हें सुनने का मौक़ा मिला। उन्होंने कहा, इनमें कुछ तो बहुत बेकार हैं जो उन्हें नहीं चाहिएँ। चूँकि उन्हें वज़न कम करना था, तो कहा, अगर आपको चाहिएँ तो ले लीजिए। मैंने रिकार्ड देखे। दिल ने कहा, उनसे कहूँ, आप ख़ज़ाना लुटा रहे हैं। जोश ने साथ नहीं दिया। और मैंने रिकार्ड जल्दी से उनसे ले लिये। ये गाना उन्हीं में से था। उन्होंने कहा, यह जानते हुए कि कोई चीज़ क़ीमती है, यह न बताना भी एक तरह की चोरी है। हाजीभाई अपने क़ीमती ख़ज़ाने को बस्ते में डालकर घर के अंदर जाकर रख आए। जब वापस आए तो संगीतकार सज्जाद के बारे में और भी कहानियाँ सुनाई।

(जारी)

1 comment:

नीरज गोस्वामी said...

Manmohak post...Noor Jahan ka ye giit to sune baras ho gaye the..Aapne fir se sunvadiya...shukriya.

Neeraj