Friday, November 19, 2010

आख़िरी रात रात और तारा दोनों होती है



राख़

वास्को पोपा (अनुवाद: सोमदत्त)

कुछ हुईं रातें कुछ तारे

हर रात जलाती अपना तारा
और नाचती काला नाच उसके इर्द-गिर्द
तारे के ख़ाक होने तक

फिर रातें होती हैं छिन्न-भिन्न
कुछ बन जातीं तारे
कुछ रही आती रातें

फिर जलाती है अपना तारा हर रात
और नाचती है काला नाच उसके इर्द-गिर्द
तारे के ख़ाक होने तक

आख़िरी रात रात और तारा दोनों होती है
ख़ुद को जलाती है
नाचती है काला नाच अपने ही इर्द-गिर्द


(चित्र: माकूच्कीना हूलिया की पेन्टिंग नाइट होरोस्कोप)

No comments: