Sunday, November 14, 2010

आंग सान सू ची को सलाम


आंग सान सू ची को सलाम

शिवप्रसाद जोशी

म्यामांर की लोकतंत्रवादी नेता आंग सान सू ची 15 साल बाद अपने घर से बाहर निकल पाएंगी. उन्हें सैनिक शासन ने नजरबंदी से रिहा कर दिया है. 65 साल की सू ची की रिहाई एक तरह से नेल्सन मंडेला की रिहाई की याद दिलाती है.

सू ची अपने देश में और पूरी दुनिया में लोकतंत्र और नागरिक मूल्यों की हिफाजत की एक बडी प्रतीक बन गई थीं. 21 साल उन्होंने सैनिक शासन की बंदूकों के साए में गुजारे हैं. अंतरराष्ट्रीय दबाव से ज्यादा ये सू ची की अपनी अविश्वसनीय सी अटूट जिद ही थी किहुकूमत को उनकी रिहाई करनी ही पडी.

हालांकि सू ची ने ये भी साफ कर दिया है कि अगर रिहाई के लिए कोई शर्त थोपी गई तो वो स्वेच्छा से फिर नजरबंदी में चली जाएंगी. बहरहाल दक्षिण पूर्व एशिया के लिए ये एक बहुत बडी खबर है. कहना चाहिए पूरी दुनिया में लोकतंत्र की लडाई को अलग अलग ढंग से लडने वालों के लिए ये एक राहत की खबर है.

सैनिक शासन ने यूं तो संवैधानिक नियमों की ऐसी घेराबंदी लोकतांत्रिक अभियानों, नेताओं और दलों के खिलाफ की हुई है कि सू ची के बाहर आने के बाद उनके देश में अचानक ही कोई बदलाव हो पाएगा. ये सोचना दूर की कौडी है. लेकिन सू ची के ही शब्दों में कहें तो शांत रहने का भी एक वक्त होता है और बोलने का भी एक वक्त होता है. उन्होंने अपने समर्थकों से उस अपार धीरज को बनाए रखने की अपील की जो पिछले कई दशकों से वे प्रदर्शित करते आए हैं.

सू ची के सामने अब कई चुनौतियां हैं. वे जानती हैं कि पश्चिम ताकतें भले ही उनकी रिहाई के पक्ष में रही हैं लेकिन अमेरिकावादी आग्रह पूरी पश्चिम मानसिकता पर छाया हुआ है और एशिया के धुरंधर देश भी अमेरिकावाद से अछूते नहीं है. सू ची के सामने मंडेला की रिहाई का ऐतिहासिक क्षण भी है, उनकी अपनी लडाई का इतिहास भी और अफ्रीकी देशों में लोकतांत्रिक मूल्यों के सामने अब तक आ रही कडी चुनौतियां भी सू ची देख ही रही होंगी. पूरी दुनिया एक नई लडाई की तरफ बढ चुकी है जहां पूंजी से जुडा घिनौनापन है और देश के देश मंडी में बदल दिए गए हैं. अर्थव्यवस्थाएं या तो दहाड रही हैं या एक सामुहिक हाहाकार का माहौल है. म्यामांर भी इस अभूतपूर्व जगमग और उससे पैदा अंधकार की इस विराटता में एक कोना है जहां से सू ची की रिहाई इन तीखी हवाओं में एक कांपती हुई लौ की तरह है.

फिर भी.. फिर भी सू ची की रिहाई और उनका संघर्ष एक माने में आज की लडाइयों के लिए मशाल सरीखा है जो विभिन्न स्तरों पर लडी जा रही हैं, सर्वसत्तावाद के खिलाफ हों या पूंजीवादी अधिनायकवाद के खिलाफ या अश्लील भूमंडलीकरण के खिलाफ. जिसमें स्थानीय दबी कुचली अस्मिताएं और तमाम जन विमर्श हाशिए पर फिंकवा दिए गए हैं.

(फ़ोटो: इन्डियन एक्सप्रेस से साभार)

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

म्यनमार का इतिहास की दिशा निश्चित करने में सक्षम है यह रिहाई।

The Serious Comedy Show. said...

salaam.