Saturday, October 16, 2010

नदियों पार रांझण दा ठाणा, कीत्ते कौल ज़रूरी जाणा



बाबा नुसरत से सुनिये पंजाबी लोक साहित्य से एक रचना - मन अटकेया बेपरवा दे नाल, उस दीन दुणी दे शाह दे नाल

5 comments:

PD said...

दिन बन गया जी.. :) अब अगले तीन-चार दिनों तक यही चलने वाला है रिपीट ट्रैक में..

Nanak said...

नुसरत साहब का जौनपुरी राग में गाया यह भजन मन को छू गया। सुनवाने के लिए कोटिश: आभार!

मुनीश ( munish ) said...

pure ecstasy ! a reason to live for !what else !

संजय भास्‍कर said...

मन को छू गया।

बाबुषा said...

उस दीन दुणी दे शाह दे नाल