Monday, September 20, 2010

माया महाठगिनी हम जानी



पण्डित कुमार गन्धर्व गा रहे हैं कबीरदास जी की विख्यात रचना

माया महाठगिनी हम जानी
निरगुन फांस लिए कर डोलै, बोलै मधुरी बानी.
केसव के कमला व्है बैठी, सिव के भवन भवानी.
पंडा के मूरत व्है बैठी, तीरथ में भई पानी.
जोगि के जोगिन व्है बैठी, राजा के घर रानी.
काहू के हीरा व्है बैठी, काहू के कौड़ी कानी.
भक्तन के भक्ति व्है बैठी, ब्रह्मा के बह्मानी.
कहै कबीर सुनो भाई साधो, वह सब अकथ कहानी

7 comments:

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

कबीरदास जी के दोहे छंद बेमिशाल है.. और ये राग पर सुनाई देता तो और अच्छा लगता .पर अभी सिस्टम पर बफ़र नहीं हो पाया है... शुक्रिया आपका इस सुन्दर रचना कि पोस्ट बनाने के लिए...

वन्दना अवस्थी दुबे said...

कुमार गन्धर्व जी ने कबीर को इतने दिल से गाया है, कि सुनने वाला अत्मविस्मृति की अवस्था में पहुंच जाता है. बहुत सुन्दर प्रस्तुति. आभार.

abcd said...

शान्दार,अद्भुत..अद्वितिय सन्कलन!!
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कुमार जी के एक परिचित कह रहे थे कि चार साडे चार बजे शाम को कुमार जी उन्के घर के आन्गन मे बैथे थे,चाय आने वाली थी/
कुमार जी बार बार घडी देख रहे थे तो ये बोले की चाय आती होगी...कोइ जवाब नही आया/
चाय आने के बाद भी घडी देख्नेने का सिलसिला जारी रहा/
थोडी देर मे एक मेन्धक(frog) उछल्ता हुआ उन लोगो के साम्ने से गुज़र गया /
कुमार जी बोले लग्भग इसी समय रोज़ ये यहा से गुज़र्ता है !!
और फ़िर केहने लगे की चार रितुओ के बीच-बीच मे भी १५-१५..२०-२० दिन का परिवर्तन काल होता है /और हर चीज़ का कुछ ना कुछ नीयम है /

और उन पर भी उन्होने रागो की रच्ना की है /
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गुणीजन इस्का अर्थ निकाल लेवे,मुऴ अदने के दिमाग मे उन्के प्रक्रिति से सम्बन्ध और इत्ना अधिक नज़्दिक होने की बात आती है/क्योन्की मेरा शस्त्रिय ग्यान शुन्य है /

नीरज गोस्वामी said...

अहहहहः...इस आनंद का क्या कहना...स्वर्गिक आनन्द...

नीरज

kishor parsad said...

jai ho kabir das ji ki jinhone ye sab rachna rachi,aur jai ho pandit ji ki jinhone aisa gaya

kishor parsad said...

jai ho kabir das ji ki jinhone ye sunder rachna banai,,,aur jai ho pandit ji ki jinhone ye rachna gaai,,,,,,,,

ताऊ रामपुरिया said...

कितनी भी बार सुनो, प्यास नही बुझती, बहुत बहुत आभार.

रामराम.