Tuesday, June 22, 2010

अर्शिया सत्तार से मिलिये

यह आलेख तथा एक ज़रूरी सूचना मुझे मेल से प्रतिलिपि के सम्पादक और कवि गिरिराज किराडू ने भेजे हैं. ग़ौर फ़रमाएं:



अर्शिया सत्तार से मेरा परिचय काफी दिलचस्प तरीके से हुआ. जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में वे एक खाली पूल के किनारे बैठी लिटिल मैग्ज़ीन की संपादक अंतरा देवसेन के साथ ऐसे बतिया रही थीं जैसे महीनों बाद ससुराल से लौटी लड़कियां अपनी सहेलियों से. अंतरा से थोड़ा-सा परिचय था, ई-मेल आदि के मार्फ़त.

इस फेस्टिवल में हर रोज़ हम दोपहर आते आते आत्म-मुग्ध, कुछ कुछ दयनीय ढंग से मंडरा रहे सितारा लेखकों की थोक मौजूदगी से त्रस्त हो जाते हैं. कुछ वैसा ही हाल और समय था. हमने अंतरा से दुआ सलाम की और उसके यह कहने पर कि वो सबस्क्राइब करेगी उसे चौथे अंक की एक प्रति दे दी. हमने अर्शिया को बिलकुल भी एड्रेस नहीं किया और काफी थका हारा-सा हलो कह कर चल दिए. अगले दिन अर्शिया का सत्र था और वे जिस तरह दुर्लभ अंतर्दृष्टि के साथ, बहुत निर्भीक स्वर में लेकिन आत्म-मुक्त होकर खुद पर अधिक हंसते हुए बोलीं हमें अपने किये पर किंचित शर्मिन्दगी हो आयी. मैंने उनसे कहा अगर आप चाहें तो मैं आपको एक प्रति इसलिए भी दे सकता हूँ कि उसे पढ़कर आप तय कर लें कि प्रतिलिपि आपके लिखने लायक मंच है कि नहीं. वे मुस्कुरा कर बोलीं, " कल से मैं सोच रही थी क्या किया जाये कि यह सुन्दर पत्रिका मुझे भी मिल जाये!"

फिर उनसे अगली बार मुलाकात हुई बनारस में एक सेमिनार में. वहां उनसे कुछ कायदे का परिचय हुआ. वहां जो हतप्रभ कर देने वाला परचा उन्होंने पढ़ा, वह बाद में प्रतिलिपि में प्रकाशित हुआ. पाठकों की जानकारी के लिए अर्शिया सत्तार के वाल्मीकि रामायण और कथासरित्सागर के अंग्रेजी अनुवाद पेंग्विन ने प्रकाशित किये हैं. उन्होंने क्लासिकी भारतीय साहित्य में शिकागो यूनिवर्सिटी से पी.एचडी की है. वे मुंबई में रहती हैं. संगम हाउस उनके स्थापित किया हुआ है. दक्षिण एशिया में इसका काम वे खुद देखती हैं जबकि अमेरिका में डी.डब्ल्यू. विल्सन. संगम हाउस रेजीडेंसी उन लेखकों पर फोकस करती है जिन पर शुरुआती ध्यान तो गया है लेकिन जिन्हें अभी ठीक से स्थापित होना बाकी है. भारतीय भाषाओँ के साथ इसमें डेनिश, जर्मन, पुर्तगाली, ऑस्ट्रियाई और अंग्रेजी में लिखने वाले नए लेखक भी आये हैं. इस वर्ष भी इसका स्वरुप इसी तरह बहु-भाषीय और बहु-देशीय बने रहने की उम्मीद है. रेजीडेंसी में आने वाले लेखकों में से किसी एक को कोरिया में महीने भर की रेजीडेंसी के लिए भी चुना जाता है. कबाड़खाना के मार्फ़त मैं यह सूचना इच्छुक हिंदी लेखकों तक पहुंचा रहा हूँ. संक्षिप्त विज्ञप्ति नीचे है.

- गिरिराज किराडू

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दक्षिण भारत स्थित अंतर्राष्ट्रीय लेखक पीठ (रायटर्स रेजीडेंसी) संगम हाउस सभी भारतीय भाषाओँ के लेखकों से वर्ष २०१०-२०११ के लिए आवेदन आमंत्रित करती है. रेजीडेंसी सत्र नवम्बर-दिसंबर में दस सप्ताह तक चलता है और एक लेखक के लिए यह अवधि सामान्यतः २ से ४ हफ्ते की होती है. लेखक उपयुक्त सामग्री के साथ आवेदन कर सकते हैं. चयनित लेखकों के आतिथ्य की व्यवस्था हम करते हैं लेकिन उन्हें आने जाने का किराया खुद उठाना होता है.

इस वर्ष आवेदन की अंतिम तिथि ३० जून है. सफल आवेदनकर्ताओं को निर्णय की सूचना अगस्त २०१० के अंत तक दी जाएगी.

और जानकारी के लिए हमारी वेबसाईट देखें: http://sangamhouse.org

2 comments:

मुनीश ( munish ) said...

राम -कथा की मर्मज्ञ हैं अर्शिया . प्रणाम करता हूँ इस विभूति को .

soni garg goyal said...

पहली बार आई हूँ यहाँ, ये कबाडखाना नहीं ये तो कुबेर का खजाना है !!!!!! बहुत ही अच्छा खजाना है आपके पास !!!!!