Friday, April 16, 2010

चार्ली चैप्लिन के कुछ किस्से



मोन्टे कार्लो में चार्ली चैप्लिन जैसा दिखने की एक प्रतियोगिता चल रही थी. किसी को बताए बिना स्वयं चार्ली भी इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने पहुंच गए. वे तीसरे नम्बर पर रहे.

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एक दफ़ा चार्ली चैप्लिन अपने मित्र मशहूर चित्रकार पाब्लो पिकासो से मिलने गए. चैप्लिन का बचपन लन्दन के ईस्ट एन्ड की गुरबत में बिया था और बचपन में सीखे गए उसके सबक ताज़िन्दगी उनके साथ रहे. पाब्लो किसी पेन्टिंग पर काम कर रहे थे. बातों बातों में उनके ब्रश से पेन्ट के कुछ छींटे चार्ली की नई सफ़ेद पतलून पर लग गए. पाब्लो ने झेंपते हुए माफ़ी मांगी और पतलून से रंग साफ़ करने के लिए किसी चीज़ को ढूंढने लगे. चार्ली ने तुरन्त कहा - "छोड़ो पाब्लो! अपनी कलम निकाल कर मेरी पतलून पर अपने दस्तख़त कर दो बस!"

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१९४० में जब चार्ली ने अपनी फ़िल्म द ग्रेट डिक्टेटर पर काम करना शुरू किया तो अडोल्फ़ हिटलर का मज़ाक उड़ाती इस फ़िल्म की सफलता को लेकर उनके मन में गम्भीर संशय थे. वे अपने दोस्तों से लगातार पूछा करते थे - "सही बताना. मुझे इस फ़िल्म को बनाना चाहिये या नहीं? मान लिया हिटलर को कुछ हो गया तो? या जाने कैसी परिस्थितियां बनें?" चैप्लिन के प्रैय मित्र डगलस फ़ेयरबैंक्स ने चार्ली से कहा - "तुम्हारे पास कोई और विकल्प नहीं है चार्ली! यह मानव इतिहास की सबसे चमत्कारिक ट्रिक होने जा रही है - कि दुनिया का सबसे बड़ा खलनायक और दुनिया का सनसे बड़ा मसखरा, दोनों एक जैसे दिखें. अब अगर मगर बन्द करो और फ़िल्म में जुट जाओ."

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"मुझे अकल्पनीय पैसा मिलता था" एक दफ़ा चैप्लिन ने एक इन्टरव्यू में बताया था "मेरे अकाउन्ट में बहुत पैसा था पर मैंने उसे कभी देखा नहीं था. सो मुझे इस बात को सिद्ध करने के लिए कुछ करना था. सो मैंने एक सेक्रेटरी रखा, एक बटुआ खरीदा, एक कार खरीदी और एक ड्राइवर काम पर लगा दिया. एक शोरूम के बाहर से गुज़रते हुए मैंने सात सवारियों वाली एक कार देखी जिसे उन दिनों अमेरिका में सबसे अच्छी कार माना जाता था. दर असल बेचने के लिहाज़ से वह गाड़ी कहीं अधिक चमत्कारिक थी. खैर मैं भीतर गया और मैंने पूछा - "कितने की है?"

"चार हज़ार नौ सौ डॉलर"

"पैक कर दीजिये" मैंने कहा.

वह आदमी हैरान हो गया और उसने इतनी बड़ी खरीद इतनी जल्दी कर लेना ठीक नहीं समझा "सर आप इन्जन देखना चाहेंगे?"

"क्या फ़र्क पड़ता है - मुझे उनके बारे में कुछ नहीं आता." मैंने कहा. अलबत्ता मैंने गाड़ी के एक टायर को अपने अंगूठे से दबा कर देखा ताकि मैं थोड़ा पेशेवर नज़र आ सकूं.

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विश्व फ़िल्म इतिहास के चुनिन्दा मज़बूत स्तम्भों में एक सर चार्ल्स स्पैन्सर उर्फ़ चार्ली चैप्लिन वर्ष १८८९ में आज ही के दिन पैदा हुए थे.

12 comments:

मुनीश ( munish ) said...

We miss u Charlie , we miss u !

मुनीश ( munish ) said...
This comment has been removed by the author.
मनोज कुमार said...

बहुत अच्छी और रोचक प्रस्तुति।

मनीषा पांडे said...

अपने समय का सबसे अदृभुत मौलिक कलाकार।

anjule shyam said...

acchi lagi charli ki duniya....
itna saral jo aam jiwan mein ho wahi apne filmon mein is tarah hasa sakta hai...wah aartical ke liye shukriya.....

नीरज गोस्वामी said...

ना भूतो न भविष्यति...अद्भुत कलाकार...जिसने विश्व की सभी सीमाओं को तोड़ कर लोगों के दिल में घर किया.
नीरज

सुशील छौक्कर said...

ऐसे इंसान भुलाए नही जाते। मैंने कभी हँसी के कार्यक्रम बचपन में बहुत कम देखे थे पर चार्ली जी का कायल रहा हूँ।

Anonymous said...

चार्ली गज़ब ही थे...

शरद कोकास said...

बहुत अच्छा लगा यह पढ़कर । सभी से अनुरोध चार्ली चैपलीन की जीवनी अव्श्य पढ़ें ।

प्रवीण पाण्डेय said...

सुन्दर

Arun Bhardwaj said...

kuch log duniya m sirf ek hi baar aate hain, wo apne adbhut kamon s logo k beech alag jagah hi nahi banate balko salon tak logo k dilon per raj karte hain, aise hi the charlie. uneh aur unke abhinay ko kabhi nahi bhulay ja sakta

Anonymous said...

i love u n miss u charli. kash mai tum se ek baar mil paata.