Tuesday, August 4, 2009

इज़ ही अ ब्राउन बैड ऑ अ चाइना प्लेट

लोर्ना डून वाली पिछली पोस्ट में कॉक्नी अंग्रेज़ी का ज़िक्र करते हुए मुझे अपने ब्रिटिश दोस्त डेविड फ़ेयरब्रदर की याद आती रही थी. वह पिछले साल यहां था और उस के पिछले साल भी. उसका परिचय यह है कि वह भाषाशास्त्र पर पिछले बारह सालों से अनुसंधानरत है. यह पोस्ट उस से पाई गई सूचनाओं पर आधारित मानी जानी चाहिए.

इतिहास की दृष्टि से आमतौर पर मज़दूरों के साथ जोड़ कर देखा जाने वाला अंग्रेज़ी का यह संस्करण कहीं न कहीं पिछले सौ-पचासेक सालों से अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंची आधुनिक ब्रिटिश विट की जड़ों में है.

लन्दन के ईस्ट एन्ड इलाके में रहने वाले कामगारों की भाषा के तौर पर वि/(कु) ख्यात इस ज़बान की जड़ों तक जाने का रास्ता चौदहवीं सदी के विलियम लैंगलैन्ड और ज्यौफ़्री चॉसर जैसे लोगों की रचनाओं में खोजा जा सकता है. दीगर है कि 'कैन्टरबरी टेल्स' लिख चुके ज्यौफ़्री चॉसर को अंग्रेज़ी कविता का पितामह माना जाता है. कॉक्नी शब्द का उद्‍गम coken (यानी मुर्गा) और ey (यानी अंडा) में निहित माना जाता है. इसका अर्थ होता था एक बेडौल और छोटा अंडा यानी कम ज्ञानी इन्सान.

औद्योगिक क्रान्ति के ज़माने में शहर से आए लोगों को गांवों में बहुत खराब और अनपढ़ माना जाता था क्योंकि वे न तो अपनी जड़ों से किसी भी स्तर पर जुड़े रह सके थे न कुछ नया सीख सके थे जो उन्हें 'जीने' में मदद करता. वे भाषाई तौर पर भी दीवालिया हो चुके थे. 'अ क्लासिकल डिक्शनरी ऑफ़ द वल्गर टंग' में फ़्रान्सिस ग्रोस एक क़िस्सा बयान करते हैं: "लन्दन का एक बाशिन्दा गांव पहुंचकर एक घोड़े को हिनहिनाता हुआ सुनता है और कहता है - 'आप ने सुना किस तरह हंसा यह घोड़ा?' एक राहगीर ने उसे ठीक करते हुए बताया कि घोड़ा हंसता नहीं 'हिनहिनाता' है. अगली सुबह कौवे की कांवकांव सुनकर ये लन्दननिवासी साहब बोल उठे - 'अरे सुनो कौवा हिनहिना रहा है'"

हो सकता यह एक फ़ैब्रिकेटेड क़िस्सा हो पर लब्बोलुबाब यूं है कि शहरों और ख़ासतौर पर लन्दन में रहने वालों की भाषा का क़स्बाई और ग्रामीण इंग्लैंड में बहुत मज़ाक उड़ाया जाता था.

कालान्तर में लन्दन के कुछेक हिस्सों में सीमित कॉक्नी भाषा बोलने वाले लोग शहर के अन्य हिस्सों में भी बसे और बीसवीं सदी की शुरुआत से एक विशिष्ट तबके में, प्रमुखतः युवाओं में यह भाषा चल निकली.

इसका व्याकरण बहुत विचित्र है लेकिन इस में जिस तरह के भाषाई प्रयोग होते हैं वे बचपन से अंग्रेज़ी पढ़्ने को अभिशप्त लोगों(उसे एक अलग तरह से पसन्द करने वालों) के लिए बेहद मनभावन और मनोरंजक होते हैं.

कुछ उदाहरण देखिये:

१. Would you Adam and Eve it? (क्या तुम इस बात पर यक़ीन करोगे?)

२. He's half-inched me motah (motor). (उस ने मेरी गाड़ी चुरा ली है.)

३. You are in a right old two and eight. (तुम बुरे फंस गए हो गुरू!)

४. He is a bit Radio rental. (वह पिकनिक के वास्ते कुछ सैन्डविच बना लाया है.)

५. He's lost his marbles. (उसका दिमाग फिर गया है.)

६. Let's go Dutch. (यारी पक्की खर्चा अपना अपना.)

७. Lets have a butchers at the paper. (ज़रा कगज़ पत्तरों पर निगाह मार ली जावे.)

८. Mom-in-law is brown bread now! (सासू लपक लीं! यानी स्वर्ग सिधार गईं!)

९. Why do you become Brahms and Liszt everytime we chillout? (हमारी हर दावत-पार्टी में तू टल्ली
क्यूं हो जाता है यार?)

१०. Who's that China Plate? (ये नया कौन है बे?)

(ज़रा भी मौज आए तो जनाब डेविड फ़ेयरब्रदर को थैंक्यू कहें, मा डिया फ़ैलाज़!)

फ़ुटनोट:

१. अर्ल स्टेनली गार्डनर के पाठक यहां कुछ और ऐसे ही शब्द-समूहों के बारे में बता कर अहसान कर सकते हैं और जॉर्ज माइक्स (कुछ लोग माइक्स को जन्म के समय की उसकी नागरिकता के आधार पर मिकेश भी कहते हैं) को जानने वाले भी.

२. समूचे मॉन्टी पाइथन और पी जी वुडहाउस मिथक पर कॉक्नी का कितना प्रभाव है, जानकार लोग जानते ही होंगे.

३. अभी ज़रा जल्दी है. घन्टी बज रही है, I have to take a dog and bone, guys! (फ़ोन आया है यार कॉक्नी में.)




8 comments:

जय पुष्‍प said...

Thank You! David and Ashok!

Unknown said...

ये काक्नी तो पिडगिन की भी अम्मा निकली। वाह, जबरदस्त। भाषा की जैविक जड़ों पड़ लगी मिट्टी की धुलाई करती पोस्ट।

मुनीश ( munish ) said...

I had heard a bit about Cokeney, but never knew so many interesting details . That's an enriching post fo' sure !

Ek ziddi dhun said...

८. Mom-in-law is brown bread now! (सासू लपक लीं! )
क्या बोलते हो उस्ताद...
क्या दिलचस्प और ज्ञान भरी पोस्ट है. यूँ ही है कबाड़खाना बस एक कबाड़खाना.

अनूप शुक्ल said...

पोस्ट पढ़कर अच्छा लगा। कित्ता सारा है दुनिया में जानने को। शुक्रिया।

sanjay vyas said...

भाषाओं के ऐसे दिलचस्प किन्तु लोकप्रिय संस्करण उन लोगों की ' वाट लगाते ' हैं जो भाषाओं को तयशुदा दायरों और व्याकरण में बाँधने की जुगत में रहते हैं जिससे कोई भी तीन या छ महीने में अमुक भाषा विद हो जाए.
क्यों बार बार यहाँ आना अच्छा लगता है, इस पोस्ट से जाना जा सकता है.
सन्दर्भवश बता दूँ, मेरे लिए नई जानकारी जोड़ गयी ये पोस्ट. शुक्रिया.

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

गजब मजा आया। शुक्रिया।

siddheshwar singh said...

काक्नी में ' बहुत बढ़िया ' को क्या बोलेगें ?