Monday, March 23, 2009

दुख ने मुझे भर दिया है साहस से : राफ़ाल वोयात्चेक की कुछ कविताएं और


कुच दिन पहले राफ़ाल वोयात्चेक (१९४५-१९७१) की चन्द कविताओं से आपका परिचय कराया था. उस पर आप लोगों का रेस्पॉन्स बहुत उत्साहवर्धक था. कुछ मित्रों की फ़रमाइश पर राफ़ाल की कुछ कविताएं और:

शब्दज्ञान

मेरा शब्दज्ञान इतना सीमित है! 'उम्मीद' का शब्द 'कल'
केवल तुमसे जुड़ा हुआ है
'प्रेम' नाम का शब्द मेरी जीभ को छका दिया करता है और
ख़ुद को 'भूख' शब्द के अक्षरों से नहीं बना पाता.

दुख ने मुझे भर दिया है साहस से, जाता हूं अब तुम्हारे ख़्वाबों को छोड़कर,
निराशा में मैंने अपने सपने को भींचा हुआ है अपने ही दांतों से
मुझे बतलाओ - क्या कुछ भी और करने को बचा हुआ है अब
जबकि खु़द 'मृत्यु' भी अपने कार्यों को ज़बान नहीं दे पा रही?

कितनी दराज़ें

कितनी दराज़ें हैं मृत्यु के पास! - पहली में
वह इकठ्ठा करती है मेरी कविताएं
जिनकी मदद से मैं उसकी आज्ञा का पालन करता हूं

दूसरी में तो निश्चय ही
उसने सम्हाली हुई है बालों की एक लट
तब से जब मैं पांच साल का था

तीसरी में - रात की मेरी
पहली दाग़दार चादर
और अन्तिम परीक्षा की मार्कशीट

चौथी में वह रखे है
निषेधाज्ञाएं और प्रचलित कहावतें
"गणतन्त्र के नाम पर"

पांचवीं में समीक्षाएं, विचार
जिन्हें वह उदासी के वक़्त
पढ़ा करती है

उसके पास निश्चय ही एक गुप्त दराज़ होनी चाहिये
जहां सबसे पवित्र वस्तु धरी हुई है
- मेरा जन्म प्रमाणपत्र

और सबसे नीचे वाली, जो सबसे बड़ी भी है
- उसे वह बमुश्किल खोल पाती है -
वह बिल्कुल मेरे नाप की होगी.

एक विशिष्ट स्थिति

स्पष्ट है, मेरे हाथ काटे जा चुके
मैं अपने दांएं ठूंठ पर
बंधी एक लकड़ी से लिखता हूं
मैं उस लकड़ी को डुबोता हूं भूरी स्याही में
मेरा कोई सिर नहीं
किसी ने मेरे लिंग के निशान धोकर
मेरी टांगों को छिपा दिया
हूं मैं, हां,
मैं तैर रहा एक स्नानागार में
अपने पशुओं के रक्त में.

ऑफ़ सीज़न

मैं समय पर नहीं आया
सीज़न अभी शुरू नहीं हुआ
और स्थानीय लोग कहते रहते हैं
यहां कुछ नहीं होगा

कल
मैंने देखा एक प्रोफ़ेसर को ले जाया गया
एक कूड़ेदान में - वह इतना नन्हा था -
हां सही है - यहां सिकुड़ जाया करते हैं लोग
भोजन और
ताबूत के तख़्तों के वास्ते पैसा बचाते हुए

वह प्रोफ़ेसर
वह प्रोफ़ेसर जो असल में पूरी शुरुआत था
वह घसीटता था अपनी टांगें
वह संकेत भर था अपनी नई रखैल का
एन्ड्रू नाम था उसका
हां सही है - यहां कुछ नहीं होगा

सही है, मैं समय पर नहीं आया
जो भी जीता है
जल्दी-जल्दी मर रहा है
एक कमरा अभी से स्टोर-रूम की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है
निश्चय ही, बहुत जल्दी
वे वहां से सलाख़ों को हटा देंगे

बिल्कुल सही है - अन्त आ चुका है
गलियारों में पोंछा लगाया जा रहा है
पॉलिश की जा रही है फ़र्श पर.

मैं, काफ़्का

दिल उग कर मुझ से बड़ा हो चुका
मैं जड़ बन चुका भीतर से
पूरा

मेरे होठों पर उगती हैं
सफ़ेद घासें

एक हिजड़े की
प्रशिक्षित बेटी, जूलिया,
हल चलाती है मेरी बीमारी पर.

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राफ़ाल की पिछली पोस्ट का लिंक:

मेरे सामने एक आदमी लाओ मैं उसकी महानता को पहचानूंगा

जल्द ही आपको राफ़ाल की कुछ और शानदार कविताओं से मिलवाऊंगा.

7 comments:

शायदा said...

ye sab kahan chhipakar rakha hai,,,? bar-bar hairan karte rehne k liye.

मुनीश ( munish ) said...

अशोक भाई 'सारिका' में कभी इस किस्म की चीज़ें छपा करतीं थीं । इन्हें पढ़ कर जाने क्यों अवसाद सा महसूसता हूँ मैं । एक अजब सा भारीपन । लप्पू कब आएगा ? मैं 'ये देश है वीर जवानों का...' सुनने का बे हिसाब खाहिश्मंद हूँ अब ! अब्सौलूट तो नहीं स्मिर्नोफ़ ज़रूर इफरात से मिल गई है यहाँ ।

neera said...

shukria! bahoot achchhi kavitaayein hein..

मुनीश ( munish ) said...

Incidentally, im sporting a beard like Raffel these days .

Unknown said...

Hi, it is nice to go through ur blog...well written..by the way which typing tool are you suing for typing in Hindi..?

i understand that, now a days typing in an Indian language is not a big task... recently, i was searching for the user friendly Indian language typing tool and found.. " quillpad". do u use the same..?

Heard that it is much more superior than the Google's indic transliteration...!?

expressing our views in our own mother tongue is a great feeling...and it is our duty too...so, save,protect,popularize and communicate in our own mother tongue...

try this, www.quillpad.in
Jai..Ho...

ravindra vyas said...

shukriya!

Hanfee Sir IPSwale Bhaijaan said...

apki daraz kavita bahut hi acchi lagi, apki nai rachnaon, ki suchna mujhe avashya email kijiyega