Thursday, March 26, 2009

उफ़, मुक्केबाज़ नहीं बल्कि कवि होना

विस्वावा शिम्बोर्स्का की कविताओं में एक अद्वितीय ह्यूमर भी पाया जाता है, जो उनकी कविताओं को महान बनाता है. ठोस वास्तविक चीज़ों की सतह के बस थोड़ा सा नीचे कितनी विद्रूपताएं छिपी रहती हैं, यह पहचानना उन्हें बख़ूबी आता है. ज़रा देखें जिस कव्यकर्म में उन्होंने अपना पूरा जीवन लगाया, जिसके लिए उन्हें साहित्य का सबसे बड़ा सम्मान दिया गया, उसे वे कितनी फ़र्क निगाह से देख पाने की आंख रखती हैं



काव्यपाठ

या तो आप एक मुक्केबाज़ हों या हों ही नहीं उस जगह
बस. हे कला की देवी! कहां है 'हमारी' जनता?
कमरे में बारह लोग, आठ सीटें ख़ाली -
समय हो चला है इस साम्स्कृतिक कार्यक्रम को शुरू किया जाए.
आधे लोग इसलिए भीतर हैं कि बाहर बारिश चालू है
बाक़ी रिश्तेदार हैं. हे कला की देवी!

यहां मौजूद स्त्रियों को चीख़ना और उत्तेजित होना अच्छा लगता,
पर वह मुक्केबाज़ी की चीज़ है. यहां उनका व्यवहार शालीन होना चाहिये.
दान्ते* की 'इन्फ़र्नो' इन दिनों रिंग के सबसे नज़दीक है
उसकी 'पैराडाइज़' भी. हे कला की देवी!

उफ़, मुक्केबाज़ नहीं बल्कि कवि होना,
जीवन में बामशक्कत कविताई करते जाने की सज़ा पा चुकना
मांसपेशियों की कमी के कारण दुनिया को यह जतलाने पर विवश कर दिया जाना
कि हाईस्कूल के कवितापाठ्यक्रम में तकदीर की मदद से उसकी कविता जगह पा लेगी.
ओ कला की देवी!
ओ नन्ही चोटी वाले फ़रिश्ते पेगासस**!

पहली पंक्ति में, एक प्यारा सा बूढ़ा हल्के ख़र्राटे ले रहा है,
वह सपने में अपनी पत्नी को दुबारा जीवित देख रहा है. इसके अलावा
वह उसके लिए उसका पसन्दीदा केक बना रही है.
भट्टी सुलग चुकी, पर ध्यान से - उसका केक मत जला देना! -
हम काव्यपाठ शुरू कर रहे हैं, हे कला की देवी!

[*.दान्ते (१२६५-१३२१) इटली के महान कवि थे. 'इन्फ़र्नो' और 'पैराडाइज़' उनकि कालजयी रचनाओं में शुमार हैं.
**.पेगासस: यूनानी गाथाओं में कला की देवियों का वाहन, उड़ने वाला घोड़ा जो अतिकल्पनाशीलता का प्रतिनिधि माना जाता है]


(पेन्टिंग का नाम है 'पोइट्री रिसाइटल'. १९५९ में जन्मे ईराकी मूल के कलाकार सट्टा हाशिम की रचना.)

3 comments:

मुनीश ( munish ) said...

sachchai hai yahi. uttam . abhaar.

मुनीश ( munish ) said...

sachchai hai yahi. uttam . abhaar.

अनिल कान्त said...

इस सच्चाई को पढ़वाने के लिए शुक्रिया

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति