Tuesday, December 30, 2008

वह मुक्ति नहीं, इच्छा लेकर आती है


यहां आप अमीर ओर को पहले भी पढ़ चुके हैं. आज पेश है उनकी एक और कविता:

कुछ लोग कहा करते हैं

कुछ लोग कहा करते हैं ज़िन्दगी चलती जाती है विकल्प के रूबरू भी
कुछ कहते हैं: फ़तह; कुछ खींच देते हैं बराबर का चिन्ह

जीवन और उसकी अनुपस्थिति के दरम्यान; और कुछ ये कहते हैं कि जीवन
हमें उनकी सेवा करने को दिया गया था जिनका जीवन

जीवन नहीं है. मैं कहता हूं: आप.
और इसे बहुत आसानी से समझाया जा सकता है: एक बार फिर ढंकती है रात

जिस सब को देखा जा सकता है. दीये जला दिए गए हैं घर में. और कोई निगाह नहीं है रोशनी में
सिवा उसके जो आईने से आती है, सिवा उसके जो देखती है

मुझे उसे देखते हुए; और वह वह मुक्ति नहीं, इच्छा लेकर आती है, मौत नहीं
जीवन लाती है. और मैं हटाता हूं अपनी निगाह गर्म और ठण्डे से - रात ढंक लेती है हर चीज़ को

और मुझे इच्छा होती है उसकी जो मुझे छू कर देखता है
मुझे कुछ भी याद नहीं रहता. बस इतना ही.

5 comments:

महेन्द्र मिश्र said...

नववर्ष की ढेरो शुभकामनाये और बधाइयाँ स्वीकार करे . आपके परिवार में सुख सम्रद्धि आये और आपका जीवन वैभवपूर्ण रहे . मंगल कामनाओ के साथ .धन्यवाद.

शिरीष कुमार मौर्य said...

बहुत खूब !

नीरज गोस्वामी said...

नव वर्ष की आप और आपके समस्त परिवार को शुभकामनाएं....
नीरज

दिनेशराय द्विवेदी said...

पाण्डेय जी और सभी कबाड़ियों को नव वर्ष की शुभकामनाएँ।

ravindra vyas said...

और मुझे इच्छा होती है उसकी जो मुझे छू कर देखता है
मुझे कुछ भी याद नहीं रहता. बस इतना ही.

कितनी मार्मिक हैं। बंधु बधाई। और नए साल की शुभकामनाएं ।