Saturday, May 10, 2008

बैठा रहा अगर्चे इशारे हुआ किये:

यूनुस ख़ान साहेब के ब्लॉग पर तलत महमूद के कुछ गीत देख/सुन कर मन प्रसन्न हो गया.

कल तलत साहब की बरसी थी. यह सूचना मुझे यूनुस भाई के ब्लॉग से ही मिली. उनका धन्यवाद.

तलत महमूद अपनी तरह के इकलौते फ़नकार थे. उनकी कांपती लहरदार आवाज़ का कोई तोड़ हिन्दी फ़िल्म जगत में नहीं.

उनकी बात चलती है तो मुझे हमेशा'शहर की रात और मैं, नाशाद-ओ-नाकारा फिरूं ...' याद आता है. मजाज़ लखनवी का कलाम और तलत साहब की आवाज़ की जुगलबन्दी सुनकर सीपिया टोन वाली किसी पुरानी फ़िल्म का कोई दृश्य खु़द-ब-ख़ुद बनना शुरू हो जाता है ... रात, एक लैम्प पोस्ट, उड़ता कोहरा, एक पेड़ का ठूंठ, किसी वीरान पार्क की बेन्च पर हौले से थमता किसी सुदूर पेड़ से टूट कर उड़ता आया एक पत्ता ... और सतत ख़ुद्कुशी के बारे में सोचता एक शायराना आशिकमिजाज़ नायक ... पहले उसके जूते ... फिर ...

ख़ैर छोड़िये. मैं तो आपके लिये तलत महमूद साहब की कुछ गज़लें लाया हूं. पहली है अवतार अग्रवाल की लिखी 'चलता रहूं, चलता रहूं'. उसके बाद मिर्ज़ा ग़ालिब की 'उस बज़्म में मुझे नहीं बनती हया किये' और अन्त में फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़' की 'ख़ुदा वो वक़्त ना लाये कि सोगवार हो तू'.

(श्री संजय पटेल ने ध्यान दिलाया है कि पहले वाली रचना ग़ज़ल नहीं, गीत है. पाठकगण भूल के लिए क्षमा करें. संजय जी का धन्यवाद)







4 comments:

अजित वडनेरकर said...

बहुत खूब। शुक्रिया। सारंगी के टुकड़े जानदार है। रिवायती ग़ज़ल के सुंदर नमूने।
पहले वाली के प्लेयर में कुछ दिक्कत है।

sanjay patel said...

अशोक भाई...तलत साहब की लरज़ती आवाज़ में शब्द को जीने का जो शऊर था वह अब कहाँ सुनाई देगा. इस बात को इन गुणी लोगों ने समझ लिया था कि शब्द की परफ़ेक्ट अदायगी के बिना गाने के कोई मानी नहीं होंगे.और एक बात कि तलत साहब की पीढ़ी के लोग भी कविता की लाजवाब समझ रखते थे. यही वजह है कि वे शायरी के वज़न से वाक़िफ़ होते थे. तलत साहब का गाया हुआ सबकुछ कालातीत है.पहली रचना संभवत:गीत है ग़ज़ल नहीं.बाक़ी दो क़लाम तो अफ़लातून हैं ...मालवा की तपती दोपहर को ख़स की सी ठंडक देते से.

Ashok Pande said...

संजय भाई, आपकी बात सौ फ़ीसदी सही है. अवतार अग्रवाल वाली रचना दरअसल गीत है ग़ज़ल नहीं. बेपरवाही में ग़लती हो गई. अभी ठीक किये देता हूं.

सुनने और अपनी राय देने के लिए धन्यवाद.

Arun Arora said...

क्या रेशमी आवाज थी जी