Friday, March 14, 2008

शेक्सपीयर और नन्ही नाव

चाहता था कि केरल की यात्रा से लगातार रपटें भेजता रहता लेकिन बदकिस्मती से मेरा लैपटॉप फोर्ट कोचीन में बेकाबू हो गया। आज त्रिचूर से बंगलौर पहुँचने के बाद मैंने देखा कि पिछली तस्वीरों पर इतने सारे कमेन्ट आए। उन के लिए सभी का शुक्रिया।

केरल में और लंबा समय गुजारता चाहता था , लेकिन समय की सीमा है और होली से पहले पहले घर पहुँच जाना है। इस दौरान जिस तरह के अनुभव हुए हैं उन पर मैं बाद में विस्तार से एक पूरी पोस्ट लिखूंगा। अभी आपको इस यात्रा के कई अविस्मरणीय अनुभवों में से एक के बारे में बताना चाहता हूँ।


त्रिवेंद्रम से हम लोग कोल्लम नाम की एक छोटी सी जगह पर पहुंचे। अष्टमुडी केरल की एक बहुत विशाल झील है। जैसा कि नाम से जाहिर है इस के आठ कोने हैं। इसी के एक तट पर कोल्लम है। कोल्लम में रात को केरल सरकार के यात्री निवास में बीयर पीते हुए एक फ़्रांसीसी पर्यटक से मुलाकात हुई। ऑनलाइन लॉटरी का धंधा चलाने वाला रोमान दिलचस्प आदमी लगा। उसे अंग्रेजी बहुत अच्छी नहीं आती थी पर देर रात तक चली हमारी बहस - बात में दुनिया भर के मसले शामिल हुए।


सुबह हमारी राहें अलग अलग हो गईं : हम मुनरो आइलैंड से एक छोटी नाव लेकर अष्टमुडी के बैकवाटर्स से होकर गुज़रना चाहते थे जबकि रोमान की मंजिल थी अलेप्पी।


रोमान से विदा लेने के बाद हमने एक ऑटो पकड़ा। करीब पौन घंटे तक भगाने के बाद हम अष्टमुडी के एक किनारे पर थे। करीब बीस साल का एक नौजवान नाविक अपनी छोटी सी नाव के साथ हमारी राह देख रहा था। बैकवाटर्स में कहीं होती हैं संकरी नहरें, कहीं आप एक चौडी नदी के सामने होते हैं, कहीं पानी झील की सूरत ले लेता है और कहीं लगता है आप समुद्र के विराट रूप का दर्शन कर रहे हैं। खजूर नारियल के वृक्षों से लदा लैंडस्केप, समुद्री झाडियों को सहलाता पानी और किनारों पर खामोशी से अपने कार्यों में लगे ग्रामीण। तरह तरह की रंगत वाले पक्षी अपनी सतत पिकनिक में रमे हुए। करीब पाँच घंटे की इस बेहद सुकून भारी और धीमी यात्रा में आप किसी गाँव में नाव किनारे लगा कर रस्सी बनाने वालों के घर देख सकते हैं, किसी गाँव में ताज़ा नारियल पानी पी सकते हैं और झाडी से तुरंत काटे गए अनन्नास का लुत्फ़ उठा सकते हैं।


खैर। यह सारी डिटेल्स आपको केरल पर्यटन से सम्बद्ध किसी भी वेब साईट पर मिल जाएंगी।


चाहे कहीं भी सफर कर रहा हूँ, मेरे लिए वहाँ मिलने वाले लोग हमेशा ज़्यादा मायने रखते हैं। बैकवाटर्स की इस शानदार यात्रा में हमारा सहयोगी नाविक बहुत साफ और अच्छी अंग्रेजी बोल रहा था। करीब आधे घंटे बाद मैंने उस से उस की शिक्षा वगैरह के बारे में पूछा। उस ने बताया की वह अंग्रेजी साहित्य में स्नातक है और अपनी पढाई आगे जारी रखना चाहते हुए भी नाव चलाने को मजबूर है। उस के पिता नहीं हैं। घर पर एक भाई और बीमार माँ है। बड़ा भाई भी नाव चलाता है। घर की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है।


मैं उस से स्नातकोत्तर की पढाई में आने वाले खर्च और किताबों वगैरह के बारे में पूछता हूँ। उस के मतलब की काफी किताबें मेरे पास हैं घर पर। कोई फैसला लेने से पहले मैं उस का एक इम्तेहान लेने की सोचता हूँ। पूछने पर वह बताता है शेक्सपीयर का नाटक 'The Tempest' उस की पसंदीदा किताब है। इस के अलावा उसे एमिली ब्रोंते का उपन्यास 'Wuthering Heigths' भी अच्छा लगता है। अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी की रूमानी कवितायेँ भी। कीट्स और शेली को वह हर अंग्रेज़ी साहित्य के युवा छात्र की तरह आदर्श मानता है। मैं काफी प्रभावित हो जाता हूँ । लेकिन अभी मैं उस का असली इम्तेहान लेना चाहता हूँ। मैं उस से पूछता हूँ 'The Tempest' शेक्सपीयर के बाक़ी नाटकों से किस कारण अलहदा है। वह सही जवाब देता है। 'The Tempest' इकलौता नाटक है जिसमें शेक्सपीयर ने शास्त्रीय नाट्य सिद्धांतों का प्रयोग करते हुए Unity of time, place and action का पूरा ध्यान रखा है।


अब मैं जानता हूँ घर पहुँच कर मेरा पहला काम क्या होगा। रंजीत नाम के इस दुबले पतले साहित्यप्रेमी नाविक के लिए खूब सारी किताबें और यथा सम्भव आर्थिक मदद जुटाना। पिछली पोस्ट पर लगे बैकवाटर्स के फोटो रंजीत की नाव से लिए गए हैं।


इस यात्रा में रोमान हमें दुबारा से मत्तनचेरी के यहूदी इलाकों में टकरा गया। उस से दोस्ती सी हुई। इजराइल से आई सुंदर गीता तुष से पहचान हुई, फिलिप नाम का एक विचित्र फ्रांसीसी आदमी मिला, होटल में रूफ़ टॉप रेस्तरां चलाने वाला विनोद नाम का एक शानदार रसोइया हमें बेहतरीन खाना खिलाने को ज़रूरत से ज़्यादा तत्पर मिला।


दो रुपये में आधे घंटे की समुद्री यात्रा का लुत्फ़ मिला। दिल्ली में रहने वाले दोस्त संतोष बाबू का भाई संदीप हमें अपने और अपनी बहन के घर ले गया, हमने अपने काम को शिद्दत से प्यार करने वाले श्रीनिवास नाम के एक अदभुत वास्तुशिल्पी से ढेर सारी बातें की। और साहित्य अकादेमी सहित कई पुरुस्कारों से सम्मानित श्रीमती सारा जोसेफ कई बनाई चाय पी उन्ही के घर। और भी बहुत कुछ हुआ। वह सब धीरे धीरे।


इन में से कोई भी बात यात्रा के हमारे एजेंडे में नहीं थी। सब होता चला गया। और व्यक्तिगत रूप से एक उत्तर भारतीय की निगाह से निस्संदेह भारत के सब से अच्छे राज्य केरल को देख समझ पाने का संक्षिप्त अवसर भी मिला। यह सब भी धीरे धीरे।


( एक पुराने गुरु जी ने शेक्सपीयर का पूरा सेट अपने खर्च पर रंजीत तक पहुंचाना स्वीकार कर लिया है। रंजीत का डाक का पता भी है मेरे पास : Ranjit R.S., Rathneesh Bhavan, Nenmeni. Munroe Island, Dist: Kollam. Kerala. Pin : 691 ५०२ )

3 comments:

siddheshwar singh said...

केरल की तस्वीरें बता रही हैं कि वहां क्या कर रहे हो बाबूजी .
आनंद और आदमीयत को महसूस करती तस्वीरें और रपट बहुत बढिया.सबसे बढिया बात तो यह कि रंजीत के लिये कुछ करना है सही लोगों के पास सही वक्त पर सही किताबें पहुंचे ,नहीं तो खुद को लिखने -पढने वालों की जमात में शामिल करने वाले हम जैसे लोग शब्दों की जुगाली करने वाले ही माने जाएंगे.ऐसा मेरा मानना है.
क्या करें ? कैसे??

Vineeta Yashswi said...

केरल के बारे में और भी कई बातें जानने का इंतजार रहेगा और उम्मीद करती हूं कि शायद रंजीत अपनी आगे की पढ़ाई कर के अपने घर को अच्छे से चला सकेगा।
फोटो तो इस बार भी मस्त हैं।

Bhupen said...

aapke sath ghum bhi liye aur ranjeet se bhi mil liye